पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/३६

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

उसके तीर में रहनेवाले मनुष्य देवता से भी परम भाग्यशाली हैं। परन्तु मनुष्य उसके त्रिभव को कुछ नही जानते ! यहाँ का यह पर्वत उनको प्राकृत पर्वत ही वे समान मालूम होता है, तो भी उनकी भक्ति इस पर्वत के विषय में शुद्ध रहती हैं । इसके विषय में जिसक्री जैसी भक्ति रहती हैं, वैसी ही उसको सिद्धि भी मिलती हैं । (२२-२३) स्वामिपुष्करिणीस्नानं सद्गुरोः पादसेवनम् ।। २४ ।। एकादशीव्रतं चापि द्वयमत्यन्तदुर्लभम् । दुर्लभं मानुषं जन्म दुर्लभ तत्र जीवनम् ।। २५ ।। स्वामिपुष्करिणीस्नानं वयमत्यन्तदुर्लभम् । अतस्तस्यास्तु माहात्म्यं वक्तुं शेषोऽपि न प्रभुः ।। २६ ।। स्वामि पुष्करिणी में स्नान, सद्गुरु की चरण सेवा तथा एकादशीव्रत यह तीनों अत्यन्त ही दुर्लभ हैं। संसार में भनुष्ध-जन्म ही दुर्लभ, तिस पर जीवन तो और भी दुर्लभ है और उसपर भी स्वामिपुष्करिणी तीर्थ-स्नान तो दुर्लभाति दुर्लभ है । अत एव उसका माहात्म्य श्री शेषजी भी वर्णन करने में असमर्थ हैं ! (२४-२६) यत्तु स्वाभिसरः स्नानं महापातकनाशनम् । तच्चापि दृष्टं बहुधा तारकासुरसूदने ।। २७ ।। प्रायश्चित्तप्रचुत्तानां नराणां सुलभा त्वियम् । स्वामिपुष्करिणी पुण्या तथा काम्यप्रदायिनी ।। २८ ।। स्वामि पुष्करिणी में स्नान करना महा पाप नाशक है, यही बात तारकासुर को नाशकरनेवाले भगवान श्री कार्तिकेयजी में बहुधा प्रत्यक्ष है । जो मनुष्य प्रायश्चित्त करना चाहे उसके लिये यह पुण्यशील तथा सर्वफलदायिनी स्वामि पुष्करिणी ही परम सुलभ उपाय है। (२७.२८) वेङ्कटाद्रेर्विशेषेण दर्शनं यच्च वर्तते । नित्यं नैमित्तिकं काम्यं प्रायश्चित्तं च तद्भवेत् ।। २९ ।।