पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/३६२

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

344 सुवीरतनयो वीरो नन्दिनीगर्भसम्भवः । स पञ्चवर्षादुद्भूतविष्णुभक्तिः स्वयं सुधीः । सौशील्यशौर्यवीर्यादि गुणानामाकरो महान् ।। ४९ ।। पाण्ड्यस्य तनयां पद्मां उपयेमे मनोहराम् । ततो राजा शतं कन्या नानादेश्याः स्वयम्वराः ।। ५० ।। रेमे देवेन्द्रवद्भूमौ नारायणपुरे वसन् । अनुज्ञां प्राप्य पितृतः पुत्रः पञ्चास्यविक्रमः । उद्दिश्य मृगयां वीरो वेङ्कटाद्रेः समीपतः ।। ५१ ।। तोण्डमान राजा की कथा उसे सुनकर रंगदास ने भी बगीचे को उत्तम बना दिया । सवा सौ वर्ष सेवन कर तीव्र बुद्धिवाला रंगदास स्वर्ग चला गया । फिर उच्व सोमवंश में उत्पन्न हो तोण्डमान नाम से प्रसिद्ध हुआ । सुवीर राजा की नन्दिनी स्त्री के गर्भ से उत्पन्न व विचारवन स्वयं पाँच वर्ष से ही विष्णुभक्त हो गया । सुशीलता, शूरता, वीरता आदि गुणों का शारी खजाना उस राजा ने पाण्डव राजा को मनोहर कत्या कमला देवी के साथ विवाछु क्रिया । पीछे छह राजा नाना देशों से सैकडों स्वयंवरा कन्याओं को खाकर नारायणपुर में रहते हुए, इन्द्र के समान रमण करने €ा तोण्डमानस्य मृगयार्थ श्रीशेषाचलागमनम् (४८-५१) पादचारेण विचरन्परिवारैः समन्वित । मदधारा विमुचेन्त ददर्श गजयूथपम् ।। ५२ ।। सिंह के समान पराक्रमवाले उस वीर पुद्ध तोण्डमान ने पिता से अनुमति खेकर श्रीबेङ्कटाद्रि के समी ही शिकार के उद्देश्य से झरिवारों से समन्वित होकर पैदल जाते जाते भद की धार बहाते हुए हाथियों के झुण्ड के नायक हाथी को देखा । (५२]