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गया । बह राजा भी पीछे-पीछे दौड़ता हुआ उसी पर्वतराज पर चढ़ गया । श्रतुर्दिक विविध गुफाओं, शिखरों को देखता-देखता तथा सृग्गे के खोजता हुआ वह राजा शामा नै वन में आया । (५६-५७) 346 तमदृष्ट्वा शुकवरं वनपालं ददर्श ह ।। ५८ ।। तं तु राजानमायान्तं प्रत्युद्वच्छन्स सत्वरः । प्रणम्य विनयोपेतः कृताञ्जलियुतः स्थितः ।। ५९ ।। तोण्डमानपि सम्पूज्य तं पप्रच्छ वनेचरम् । पञ्चवर्णः शुकः कश्चिद्दृष्टश्चात्रागतास्त्वया । श्रीनिवासेति च वदन् क्व गतोऽसौ वनेचर ? ।। ६० ।। उस शुकश्रेष्ठ को न देखकर वन के रक्षक को देखा । उसने भी राजा को आते देख झट लौट के विनययुक्त प्रणाम कर हाथ जोड़ खडा हो गया । राजा तोण्डमान ने भी उस वनैचर का अभिनन्दन कर उससे पूछा कि कोई पंचरंग सुग्गा यहाँ आता हुआ तुमने देखा हैं? हे वनेचर ! श्रीनिवास बोलते-बोलते वह किधर चला गया । (५८-६०) वनचर उवाच :- स पञ्चवण राजेन्द्र श्रीनिवास प्रियः सदा । पार्श्ववर्ती सदा तस्य श्रीभूमिभ्यां विवधितः ।। ६१ ।। स्वामिपुष्करिणी तीरे सदास्ते देवसन्निधौ । गृहीतुं स शुकःश्रीमान्न तु केनापि शक्यते । ६२ ।। विहृत्य स्वेच्छया नित्यमस्मिन्गिरिवरे शुभे । दिनान्ते देवमासाद्य तत्समीपे वसत्ययम् ।। ६३ । । ।