पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/३७१

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देवतागण झोले -श्री लक्ष्मीजी को नमस्झार है । लोकों को धात्री तथा। ब्रह्माजी को माता को नमस्कार है । कमललोचना, कमलभुखी, प्रउन्झमलवदना तथा कमल शोभासम्पन्न देवी को नमस्कार है ! बेल झे बन में निवास करनेवाली. विष्णु भगवान की पत्नी को नभस्कार है । विचित्र वस्त्र धारिणी स्थूलनितम्बवाली देवो को नमस्कार है। पक्के वेल फल के समान बड़े-बड़े तथा ऊँचे स्तनवाली की प्रणाम है । हे सुक्त कमल पुरु दल के समान लाल-लाल हाथ तथा पैरों के तलबेवाली, हे सुरत्न जटिल वलय, केयूर, करधनी, नूपुर आदि से सुशोभित सुगन्धित चन्डन से लिप्त अङ्गवाली, हे कंक्षण से चमकनेवाली, हे मांगत्य आभरणों से युक्त, मुक्ताद्वार से विभूषिते ! हे टीका, कर्णफूल आदि भूषणों से शोभित मुण्यमलवाली, कायलधारिणी ! तुम्हे नमस्कार है । हे भगवान की वल्लभे ! आप प्रसन्न होवे । ऋग्यजुस्सामरुपवाली तथा विद्यास्वरुपे ! आपको नमस्कार है । हे सभुद्रकन्ये ! क्षुभ सबों पर प्रसन्न हों तथा कृपादृष्टि से हम लोगों को देखे । आप से जो देखे गये उन्होंने ब्रह्मत्व, शिक्त्व एवं इन्द्र को प्राप्त किया । (८९-९५) 33 देवादिकृत लक्ष्मीस्तुति श्रीशुक्र उवाच :- इति स्तुता तदा देवैर्विष्णूवक्षःस्थलालया । विष्णुना सह संदृश्या रमा प्रीताऽवदत्सुरान् ।। ९६ ।। श्रीरुवाच :- श्रीशुकजी बोले-इस प्रकार स्तुति करने पर विष्णु भगवान के हृदप में वास करनेवाली रमादेवी विष्णु के साथ प्रत्यक्ष एवं प्रसन्न होकर देवताओं से बीली । 46 सुरारीन्सहसा हत्वा स्वपदानि गमिष्यथ । ये स्थानहीनाः स्वस्थानाद्भ्रशिता ये नरा भुवि ।। ९७ ।। इन्द्रादीन्प्रति स्तुतिप्रसन्नलक्ष्मीवचनम्