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355 दशमोऽध्यायः तोण्डमान्नृपस्य स्वपितुस्सकाशाद्राज्यप्राप्तिः श्रीशुक उवाच :- इदं पद्मसरो नाम सर्वपापप्रणाशनम् । कीर्तनात्स्मरणात्स्नानात्नृणां लक्ष्मीप्रदं भुवि ।। १ ।। कृत्वा स्नानं त्वसप्यस्मिन् व्रजस्व पितुरन्तिकम् । राजलाभनृप तीण्डको, वल्मीकस्थ सुवराह । वसुक्का प्रभु दर्शन कथन, प्रभु आज्ञा नना ।। १ ।। चसु बच्च अरु निज स्वप्न में, दर्शन बिल गिरि राह । तोण्डभान नृप गिरि गमन, अभिसिच क्षोर बहार ।। २ ।। पकोठी निरमान नृप वीरद्विज आख्यात । भहिमा अस्थि तडाग का, द्विज रमणी जो दान ।। ३ ।। भश्ती भीम कुरहा की, प्रभु करुणा नृप मुक्ति । वेङ्कटेश माहात्म्य का पठन श्रवण फल उक्ति ।। ४ ।। तोण्डमान राजा का अपने पिता से राऽथ्य पाना श्री शुकजी बोले-थह पवासर नामक तालाब सब पापों का नाश करनेबाला है। और संसार में कीर्तन स्मरण एवं स्नान करने से मनुष्यों को लक्ष्मी देनेवाला है। तुम भी इसमें स्नान कर अपने पिता के पास जाओो । (१) श्री वराह उवाच :- एतत् शुकवचः श्रुत्वा स्नात्वा पद्मसरोवरे ।। २ ।।