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तं नत्वा हयमारुह्य तोण्डभान्स्वपुरं ययौ । तं पित्ता युवराजानं कृत्वा त्रीन्वत्सरान्थ ।। ३ ।। रञ्जकत्वं च सामथ्यं शौर्य वीर्य सुशीलताम् । भक्ति विप्रेषु पुत्रस्थ वीक्ष्य राजा स्वमन्त्रिभिः ।। ४ ।। स्वपदे स्थापयामास स्वभिषिज्य विधानतः । अनुनीय सुतं पत्न्या सार्थ राजा वनं ययौ ।। ५ ।। तोण्डमानपि साम्राज्यं लब्ध्वा राज्यं चकार ह । श्री वरा जी वी - श्री शुक औी कै इस बच्चन की सुत्कर उस पदा8रोथर में स्नान कर, उनको प्रणाय कर घोड़े पर सवार हो तोण्डमान १जा सपने नगर की चला गया । अनन्तर उसको उसके पिताले तीन वर्षों तक युवराज २खकर पचात उस पुत्र में प्रजा रक्षण करने की सामथ्र्य, शासन शक्लि, प्रभाव पराक्रम, बल, सुशीलता तया ब्राह्मणों में भक्ति देडकर, ििध पूर्वक नन्त्रि गणों के साथ अभिषेक कर अपने पद पर स्थाशित किया और उसको सभझा-बुझाकर स्त्री के साथ वह राजा वन में चला गय, तोण्डमान भी सान्न ज्यक पार राज्य करने लगा। (२.५) वसोर्वल्मीके श्रीवराहसन्दर्शनम् निषादस्य बने देवो वाराहं रूपमास्थितः ।। ६ ।। श्यामाकपक्वं भक्षित्वा रात्रौ रात्रौ चचार ह । पदानि स वराहस्य चान्वियेष दिवा दिवा ।। ७ ।। अदृष्टा तं वराहं स रात्रौ जाग्रद्धनुर्धरः । स्थितोऽपश्यच्चरन्तं तं चन्द्रकोटिसमप्रभम् ।। ८ ।।