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362 वेङ्कटाद्रि जिगमिषुगपानाहूय सर्वशः । कृष्णाश्च कपिला गावो याः काश्चित्सन्ति मामिका: ३५ ।। ताः सवत्सा आनयध्वं वेङ्कटाद्रिसमीपतः । इत्याज्ञप्य नृपो गोपाञ्छवो यात्रेति च मन्त्रिणः ।। ३६ ।। विसृज्य प्रकृतीः सर्वा विवेशान्तःपुरं वशी । उक्त्वा कथां तां पत्नीभ्यः सुष्वाप निशि पार्थिवः ।। ३७ ।। निषादवाक्य तथा स्वप्न से राजा का बिलमार्ग द्वारा शेषाचलागमन श्री वराहजी बोले-राजा तोण्डमान भी इसको सुनकर परम आश्चर्यान्वित और प्रसन्न हुआ । तत्पश्चात पुष्करादि मन्त्रियों के साथ कार्य का निश्चय कर बेङ्कटाचल जाने की इच्छा से चारों ओर से अपने गोपालकों को बुलाकर, “ मेरी जितनी काली तथा कपिला गायें होवें उन सबों को बच्चों के साथ श्री वेङ्कटाचल के समीप ले आओ । ऐसी आज्ञा दे मन्त्रियों से भी 'कल यात्रा होगी' ऐसा कहकर, सारी सभा विदाकर उस जितेन्द्रिय राजा ने अन्तःपुर में प्रवेश किया । उस कथा को पत्नियों से कहकर राजा रात्रि को सो रहे । (३४-३७) तं स्वप्ने श्रीनिवासोऽपि बिलमर्ग ह्यदर्शयत् । स्वपुरादाबिलं . मार्गे पल्लवानसृजद्धरिः ।। ३८ ।। एवं स्वप्नं नृपो दृष्ट्टा प्रातरुत्थाय सत्वरः । आहूय मन्त्रिणः सर्वान् प्रकृतीब्रहह्मणानपि ।। ३९ ।। स्वप्नं तथाविधं चोक्त्वाऽपश्यद्द्वारेऽथ पल्लवम् ।