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363 तब उनको स्त्रप्न में श्रीनिवास भगवान ने बिलमार्ग दिखाया और भगवान ने उस नगर से बिलपर्यन्त सारे मार्ग में पल्लत्र लगा दिये । इस प्रकार का स्वप्न देख राजा ने प्रातःकाल ही में उठाकर सभी अन्त्रियों ब्राह्मणों तथा सारी प्रजा को बुलाकर उस स्त्रप्न को कहकर द्वार पर उक्त पल्लवों को देखा । (३८-३९) युक्त भुहूर्ते प्रययौ हयमारुह्य तोण्डमान् ।। ४० ।। पश्यञ्श्च पल्लवान्गाश्च शनैः प्रीतो ययौ बिलम् । दृष्ट्टा विस्मयमापन्नो निर्ममे तत्र पत्तनम् ।। ४१ ।। तब राजा तोण्डमान सुमुहूतं में घोड़े पर सवार हो पल्लवों तया गौ प्रों को देखते हुए धीरे-धीरे बिल में चले गये । वहाँ उसे देखकर परम आश्चर्यान्वित हुए और वहीं पर एक नगर बनवाया । (४०-४१) भगवदुक्त्या तोण्डमान्नृपकृतक्षीराभिषेकवप्रनिर्माणादिकम् बिलभन्तःपुरे कृत्वा प्राकारं वाप्यकारयत् । वसस्तत्र नृपेन्द्रोऽसौ निर्जित्य पृथिवीमिमाम् ।। ४२ ॥ यथोक्त देवदेवेन क्षीरप्रक्षालनादिकम् । कृत्वा प्राकारनिर्माणं कर्तुमुद्योगमाययौ ।। ४३ ।। भगवान की आज्ञा से तोण्डमान राजा से किया गया क्षीराभिषेक तथा खाई निर्माण बिल के भीतर पुरी बनाकर वही प्राचीर भी बनवा दिया और इस समस्त पृथ्वी को जीतकर उसीमें निवास करता हुआ, यह राजा देवदेव के कथनानुसार दूध से प्रक्षालनादि कर पाकार का निर्माण कार्य करने का उद्योग करने लगा । (४२-४३)