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365 श्री बराहजी बोले-मयावान के इस प्रकार के वचन को सुन, वह नृोत्तम प्राकार आदि वनाकर, वैखानs कुलोत्पन्न मुनियों के साथ रोज बिलद्वार आकर, भगवान को नभस्कार तथा उनकी पूजाकर, अनेकों उत्तम उत्तम भोगों को भीगते हुए धर्मपूर्वक राज्य कश्ने छुगा । (४८-४९) गङ्गास्नानार्थमागत वीरशर्माख्यविप्रचरितम् गङ्गास्नानाय गच्छन्वै सदारः प्रययौ पुरात् । मार्गेऽथ गर्भिणी जाता ब्राह्मणी ब्राह्मणस्स च ।। ५० ।। तां तु गर्भवतीं दृष्ट्वा स्वात्माऽनुगमनेऽक्षमाम् । राजानं द्रष्टुकामोऽसौ राजद्वारमुपागमत् ।। ५१ ।। द्वाःस्थेन ज्ञापितो राजा 'तमाहूय द्विजोत्तमम् । पूजयित्वा तु विधिवत्पप्रच्छ कुशलं द्विजम् ।। ५२ ।। गंगा स्नान के लिए आये वीरशर्मा नामक ब्राहमण की कथा इसी समय कोई दाक्षिणात्य द्विजोत्तम गंगास्नान करने की अपनी स्त्री के साथ नगर से निकला । वह ब्राह्मणी रास्ते में गर्भिणी हो गयी। तब वह ब्राह्मण उसको गर्भिणी तथा अपने साथ जाने में असमर्थ देखकर राजा को देखने की इच्छा से राजद्वार पर जाया । द्वाश्रस्य द्वारपाल से. जानकर राजा ने उस द्विजोत्तम को बुल, िवधिपूर्वक पूजन कर कुशलप्रश्न पूछा । (५०-५२) किमागमनकृत्यं ते किं करिष्याम्यहं द्विज । राजा बोले-हे ब्राह्मण | आपके आगमन का क्या कारण है? तथा मैं आपके लिये क्या कर सकता हूँ ? । .