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368 तव ब्राह्मणवीर शर्मा ने गंगाजल को कावरी (टोकरी) से बन्धन को खोलकर एक पवित्र गंगाजल की शीशी राजा को देकर इतना ही पूछा-“मेरी पत्नी सकुशल है कि नहीं?” जब राजा ने वह सब स्मरण कर उस ब्राह्मण से कहा कि “ आप बैठिये ” । (६३-६४) अन्तःपुरं ततो गत्वा तामपश्यन्मृतां गृहे ।। ६५ ।। अनुक्त्वा ब्राह्मणे तस्मै प्रविश्य बिलमुत्तमम् । श्रीनृसिंहं नमस्कृत्य पुनः प्राप्य बिलोत्तमम् ।। ६६ ।। श्रीनिवासं ययौ द्रष्टुं श्रीभूमिसहितं परम् । तं दृष्द्वा सहसाऽयान्तं जुगूहाते धरारमे ।। ६७ ।। प्रणमन्त भवोचत्तं 'किमकाले नृपागतः !' । नृपोऽवदत्प्रणम्येशं भीतोऽथ 'ब्राह्मणीं मृताम् ' ॥ ६८ ।। अन्तः पुर में जाकर राजा ने उसे घर में भरी हुई देखा । तब ब्राह्मण से विना कहे ही उस उत्तम बिद्ध में प्रवेश कर, वहाँ श्री नृसिंह को नभस्कार कर पुनः उस उत्तम बिल को पाकर श्री भूमि देवियों के साथ श्रीनिवास भगवान को देखने गया । उसको सहसा आया हुआ देखकर भू तथा श्री देवी छिप गयी । प्रणाम करते समय उससे भवान् बोले ' हे नृप असमय में क्यों आये '? भगवान को प्रणाम कर तथा भयभीत होकर राजा बोले-ब्राह्मणी मर गयी है । (६५-६८) अस्थिसरोवरमाहात्म्यम् तत् शृत्वा देवदेवोऽपि मा भी राजन् द्विजोत्तमात् । आन्दोलिकां ता मारोप्य स्त्रीभिः स्वाभिस्समन्विताम्।। ६९ ।। मदालयात्पूर्वभागे द्वादश्यां स्नापय प्रभो । अस्थिनाम्नि सरस्यस्मिन्नपमृत्यु निवारणे ।। ७० ।। ।