पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/३९०

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372 राजानमागतं दृष्ट्वा प्रणम्यैवाग्रतः स्थितः । स्थितं तं भीमनामानं पप्रच्छ नृपसत्तमः ।। ८७ ।। कुर्वपुर में जाकर उस कुम्हार के षर गरे । जारा को आते देख उनको प्रणाम कर वह कुम्हार सामने खड़ा हो गया ! उॐ श्रीम नाभक कुम्हार को खङ्का देखकर राजा ने पूछा । {८७) तोण्डमानुवाच भीम पूजयसे देवं कथं वद कुलोत्तम । राजा तोण्डमान बोले-हे कुलोत्तम भीम ! किस तरह करते हो, कहो । तुम देवामिदेव की पूछा पृष्टः प्राह कुलालोऽपि जातु जाने न चार्चनम् । केनोक्तं नृपतिश्रेष्ठ कुलालोऽर्चयतीति हि ।। ८ ।। श्री वराह जी बोले-इस प्रकार पूछे जाने पर कुम्हार ने कहा कि मैं तो पूजा आदि कुछ नहीं जानता ! हे नृपश्रेष्ठ ! ऐसा किसने कहा कि कुम्हार पूजा करता है । तोण्डभानुवाच दैवेन श्रीनिवासेन ममोक्तं हि त्वदर्चनम् । स तु श्रुत्वा नृपवचः स्मृत्वा देववरं पुरा ।। ८९ ।। राजा तोण्डमान बोले-श्रीनिवास भगवाल ने ही हमसे तुम्हारी पूजा के विषय में कहा । (८९) यदा प्रकाशिता पूजा यदा राजा समागतः । तोण्डमांस्तेन संवादस्तदा मोक्ष गमिष्यसि । इति पूर्व वरं देवो दत्तवान्वेङ्कटेश्वरः ।। ९० ।।