पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/३९१

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

373 राजा के छचन को सुनकर पहले का दिया हुआ भगवान का वरदान स्मरण कर भीम ने कहा - : जब तुम्हारो पूजा प्रकाशित ह जागी तथा जब राजा तोण्डमान आ जाएँगे और जब उनसे तुम्हारा संभाषण होगा तभी तुम मुक्ति पाबोगे' । ऐसा प्राचीन समय में श्री वेङ्कटेश्वर भगवान ने वर दिया था । (९०) इत्युक्त्वाऽथ कुलालोऽपि पत्न्या सार्ध तथैव च । विभानभागतं दृष्ट्वा देवं दृष्ट्वा जनार्दनम् ।। ९१ ।। प्रणमन्प्रजहौ प्राणान्सदारो भक्तसत्तमः । पश्यतो राजराजस्य विमानमधिरुह्यच ।। ९२ ।। दिव्यरूपधरो देव्या सार्ध विष्णपदं ययौ । अब अपनी पत्नी के साथ उस भक्त श्रेष्ठ कुम्हार ने आये हुए विमान तथा जनार्दन भगवान को देखकर उनको णाम इरते हुए प्राणों को त्याग दिया । राज राजेश्वर तोण्डदान के देखते ही देखते विमानपर चढ़कर स्त्री के साथ साथ दिव्य रूप धारण कर वह विष्णुपद वा विरुणु लोक को चला गया । (९१-९२) दृष्टा राजद्भुत तत्र स्वपुर प्राप्य हृषतः ।। ९३ ।। स्वपुत्रं श्रीनिवासाख्यमभिषिच्य विधानतः । परिपालय धर्मेण मानवांश्च वसुन्धराम् ।। ९४ ।। इत्याज्ञाप्य सुतं धीमांस्तताप परमं तपः । तप्यतस्तस्य देवोऽपि प्रत्यक्षमभवद्धरिः ।। ९५ ।। आरुह्य गरुडं देवो रमाभूमीसमन्वितः ।। ९६ ।। बुद्धिमान राजा वहाँ उस अद्भुत वृश्य को देख परमानन्दित ही अपने नगर में जाकर श्रीनिवास भगवान का विधान पूर्वक अभिषेक करके अपने पुत्र को