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“ धर्म से प्रजा, मनुष्य, तथा पृथ्वी का पालन करो' ऐसी आज्ञा देकर परम तपस्या करने लगे । उनके तपस्या करते सन्य हरि भगवान भी प्रत्यक्ष हुए । (९३.९६) 374 श्रीनिवासकृपया तोण्डमान्नृपस्य सारूप्यप्राप्तिः श्री भगवानुवाच : किं करोमि नपश्रेष्ठ तपसा तोषितस्तव । इत्युक्तो देवदेवेन तोण्डमानपि राजराट् ।। ९७ ।। प्रीतिमान्प्राञ्जलिर्भूत्वा सगद्वदमुवाच ह । त्वल्लोके वस्तुमिच्छामि जरामरणवजिते । इदमेव वरं देहि माधवैतन्ममेप्सितम् ।। ९८ ।। श्रीनिवास की कृपा से तोण्डमान को मोक्ष लाभ रमादेवी तथा भूमि देवी के साथ-साथ गण्ड पर सवार होकर श्री भगवान बोले-हे नृपश्रेष्ठ! तुम्हारी तपस्या से मैं सन्तुष्ट हुआ, अब तेरे लिये क्या करूं ? भगवान के ऐसा कहने पर राजाओं के राजा तोण्डमान परम हर्षित हो, अञ्जलि बाँधकर गद्गद होकर यह ववन बोले कि हे माधव ! मैं बुढापा तथा मृत्यु रहित हो आपके लोक में निवास करना चाहता हूँ, भेरीी यही इच्छा है, अतः आप मुझे यही बर दे । (९७-९८) श्रीवराह उवाच : इत्युक्त्वा निपपातोव्य साष्टाङ्ग देवसन्निधौ । तदा कलेवरं मुक्त्वा विमानं त्वारुरोह च ।। ९९ ।। गन्धर्वैः स्तूयमानोऽसौ सारूप्यं प्राप्य शाङ्गिणः । यच्छोकमोहरहितं जरामरणवर्जितम् । पुनरावृत्तिरहितं तद्विष्णोः पदमाययौ ।। १० ।।