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375 श्री दराह जी बोले-राजा तोण्डमा ने इतना कहकर भगवान के निकट पृथ्वी पर गिरकर साष्टाङ्ग प्रणाम किया । तत्पश्चात शरीर त्यागकर दिमान पर चढ़ गये । और गन्धवों से स्तूयमान होते हुए, नगदान का जो शोक, मोह , बुढापा एवं मरण सभी से वर्जित सारूप्य उसे पाकर पुन: आवागमन से रहित हो उसी विष्णु लोक में आ गये । (९९-१००) एतन्माहात्म्यश्रवणपठनफलश्धृति एतद्भविष्यं देवेशि मयोक्तं वरवर्णिनि ! । यः श्रावयेद्यः शृणुयाद्विष्णुलोकं स गच्छति ।। १०१ ।। हे वरवर्णिनि ! हे देवि! मेरे द्वारा तुम से कही हुई इस भविष्य कथा को जो सुनाता या सुनता है वह श्री िवष्णुलोक को जाता हैं। (१०१} सूत उवात्र : इत्युक्तां देवदेवेन सभविष्यां सहोत्तराम् । श्रुणुयाद्यः पठेद्भक्त्या कथां पुण्यां पुरातनीम् । स तु भुक्त्वाखिलान्कामानन्ते विष्णुपदं व्रजेत् ।। १०२ ।। श्री सूतजी बोले-देवादिदेह से कही हुई इस प्रकार की उत्तर सहित पवित्र तथा प्राचीन भविष्य कथा को क्षवित से जो सुनेगा एवं जो पढ़ेगा, वह अखिल कामनाओं के भोगकर अन्त में विष्णु भगवान के लोक में जायगा । (१०२) इति श्रीवाराहपुराणे भूगोलोपाख्याने धरणीवराहसंवादे उत्तरार्धे श्रीवेङ्कटाचलमाहात्म्ये भविष्यद्वर्णने तोण्डमांश्चक्रवर्तिचरित वर्णनं नाम दशमोऽध्यायः ।