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378 कथितं रङ्गमाहात्म्यं त्वया हस्तिगिरीशितुः । जगन्नाथस्य वै विष्णोर्माहात्म्यमतुलं मुने ! । इदानीं श्रोतुमिच्छामि माहात्म्यं वेङ्कटेशितुः ।। २ ।। शौनक ने पूछा-हे महाभाग ! सकल शास्त्रों में चतुर सूत! आपसे मैं पुण्यवर्धक माहात्य सुनना चाहता हूँ । अपने श्रीरङ्गजी का माहात्म्य और श्रीहस्तिगिरि के जगन्नाथ श्रीविष्णु का भी अद्भुत माहात्म्य कहा है । हे मुनि ! अब मैं श्रीवेङ्कटेशजी का माहात्म्य सुनना चाहता हूँ। (१-३) श्रीसूत उवाच--- साधु पृष्टं त्वया ब्रह्मांश्चरितं बेङ्कटेशितुः । यथा श्रुतं मया पूर्व व्यासादमिततेजस ! ३ ।। तत्तथाहं समाचक्षे सावधानमनाः शृणु । श्री सूतजी ने कहा-हे ब्रह्मन् ! आपने श्रीवेङ्कटेशजी का वरित अच्छा पूछा । मैंने अमित तेजस्वी पासजी से जैभ्रा सुना है वैसा ही कहूँगा, सावधान होकर श्रवण करो । ४५ पुरा तु जनको नाम राजा परमधार्मिकः ।। ४ ।। सत्यवाक्सर्वशास्त्रेषु कोविदः कोपवर्जितः । वासुदेवप्रसादस्य मुख्यपात्रमभून्नृप ।। ५ ।। निर्ममो नित्यतृप्तश्च निरहंकृतिरात्मधृक् । (-) प्राचीन समय में परम धार्मिक जनक नाम का, सत्यभाषी, सभी शास्त्रों में निपुण, क्रोध रहित, भगवत्कृपा का पूर्ण पात्र, क्षष्टिय जति का' ममत-रहित, अहंकार शून्य एवं आत्मज्ञानी एक राजा था । (४-५) 1. इसमें राजा और नृप दो पद होने से राजा पद मीमांसा का अवेष्टियधिकरण न्याय से क्षतिय पर है |