पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/३९७

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

तस्य भ्राताऽभवत्पूर्वं कुशकेतुरिति स्मृतः ।। ६ ।। कुशध्वजस्य तनयास्त्रयस्तलाक्यसुन्दराः । दुहितृणां त्रयं तस्य कुशकेतोर्महात्मनः ।। ७ ।। जनकस्याभवत्पुत्री जानकी नाम सा रमा । भ्रात्रा च कारयामास राज्यं जनकभूपतिः ।। ८ ।। स भ्रातुराज्ञया राज्यं चकारार्येषु भक्तिभान् । इनके कुशकेतु नामक एक बड़े भाई थे । कुशध्वज (कुशकेतु) को त्रिलोक में सुन्दर तीन पुत्र तथा तीन कन्याएँ थे । जनक राजा की-साक्षात लक्ष्मी का अवतार जानकी नामकी एक कन्या थी । जनक के भाई ने राज्य का शासन जनक से कराया । जनक मी भ्राता की आज्ञा के अनुसार पूज्य पुरुषों के प्रति मर्यादा का स्थापन कर राज्यशासन करते थे । कदाचिज्जनको राजा मनसीत्थमचिन्तयत् ।। ९ ।। सुखमव सदा म स्यात् दुःख मा भूत्कदाचन । दुःखं न वीक्षे नेत्राभ्यां सुखं वीक्षे सदाऽऽत्मनः ।। १० ।। असाधुसंमतं वाक्यं श्रुत्वेत्थमुदितं हरिः । दुःखं प्रदर्शयामास राज्यमत्तस्य भूपतेः ।। ११ ।। एक समय राजा जनक ने मन में यह सोच कि मुझ सदा सुख ही हो, दुःख कभी न हो । मैं दुःख कभी आंखों से न देखू, सदा मुझे सुख ही दीखे । श्रीहरि ने इस भद्र पुरुषों के-सज्जनों के असम्मत वाक्य को सुनकर राज्य मद से मत्त उस राजा को दुःख ही दिखाया । (९-११) कदाचिदैवयोगेन कुशकेतुरगान्मृतिम् । हतेऽनुजे च तद्भार्या तेन साकं ममार च ।। १२ ।। 1. बाल्मीकीय रामायण एवं वामन पुराणान्तर्गत श्रीवेङ्कटाचलमाहात्म्य के अनुसार दो ही कन्याएँ थीं और ऊर्मिला जनकजी की कन्या धी।