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380 राज्य पुलास्ततस्त्यक्त्वा त्वगात्पतिसलोकताम् । दैवयोग से किसी दिन जनक के भाई कुशक्रेतु मर गये । उसके म. जाने पर उनकी स्त्री भी उन्हों के साथ राज्य और पुत्रों को छोड़कर भर सत्री तथा पति के लोक को गयी ! (१२) तौ दम्पती नृपो दृष्ट्वा त्यक्तपुत्रौ सुखोचितौ ।। १३ ।। विललाप महाराजो भ्रातरं भ्रातृवत्सलः । हा भद्रे ! बालकांस्त्यक्त्वा वृद्धं मां जानकीं तथा ।। १४ ।। क गच्छसि वरारोहे ? पतिमालिङ्गय मङ्गले ! । अशीतिवर्षसाहस्र सम्प्राप्तं मम भामिनि ! ।। १५ ।। एतावत्कालपर्यन्तं न दृष्टो दुःखसञ्चयः । अद्य दृष्टो वरारोहे त्वद्वियोगेन केवलम् ।। १६ ।। इति सञ्चिन्त्य मनसि वारं वारं महीपतिः । चकार प्रेतकार्याणि पुत्राणां चैव शैशवात् ।। १७ ।। राजा जनक सुख झै अधिकारी उन दम्पति को मरे देखकर अपने भाई के प्रेम में परवश होकर विलाप इरने लगे-' हे कल्याणी ! तुम इन बालकों, मुक्त वृद्ध और जानक्री को भी छोड़कर पति को क्रालिङ्गन कर क३ जा रहा हो ? मेरी अवस्था अस्सी हजार वर्ष 5ी हो गयी । आज तक मैंने कभी दुःख-जाल नहीं देखा । आज केवल तेरे वियोग से यह महा दुःख मैंने देख है।” और बार-बार ऐसा चिन्तन कर उनके बच्चों की अवस्था छोटी होने के कारण उन मृतकों का उन्होंने प्रेत संक्रार किया । (१२-१८) मातृहीनांस्ततो बालानालिङ्ग्याङ्के निधाय च । 'भोः पुत्राः! बालभावे तु मातृहीनाश्च कर्शिताः ।। १८ ।।