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38 कथं पश्यामि नेत्राभ्यां मातृहीनांश्च बालकान्' । इति चिन्तापरः सोऽभूत् त्यक्तराज्योऽतिदुःखितः ।। १९ ।। त्यक्तान्भस्त्यक्तभोगश्च त्यक्तनिद्रोऽतिकशितः । तस्य दुःखोपशान्त्यर्थं शतानन्दः पुरोहित ।। २० ।। सम्प्राप्तो दैवयोगेन वामदेवानुजो मुनिः । पुन: उन मातृहीन बालकों को गोद में उठा छाती से लगाकर उन्होंने कहा

  • हे पुत्रो ! बाल अवस्था में ही मता से शून्य तुम बच्चों को अपनी अडौं से कैसे

दे ?” ऐसा वोचते हुए राजा जनक ये दुःखी हो राज्य, अन्न, भोगविलास एवं निद्रा की भी त्याग दिया और बहुत दुर्बल हो गये । दैवयोग से वामदेव के छोटे भाई पुरोहित शतानन्द राजा की दुःखनिवृत्ति के लिये वहाँ अा बहुँचे ! (१९-२०) प्राप्तं पुरोहितं दृष्ट्वा राजा पूजामकल्पयत् ।। २१ ।। स पूजितो मुनिवरो निविष्टो मृगचर्मणि । ततः कालोचितां वार्ता कथयामास गौतनिम् ।। २२ ।। राजा ने पुरोहित को देखकर उनकी पूजा की । झन्तर मुनिदर शतानन्द मृग धर्म पर बैठ गये और राजा ने गौतमवंशीय पुरोहित से टमयोचित बात (२१-२२) शतानन्दं प्रति जनककृतस्वशोकनिवृत्त्युपायप्रार्थना शतानन्द! महाप्राज्ञ! का गतिः स्यादितो मम । वृद्धत्वादात्मनश्चैव पुत्राणां चैव . शैशवात् ।। २३ ।। कन्यकारत्नबाहुल्याद्धतबन्धोर्महामुने ! बहवः शत्रवः सन्ति रावणेन्द्रजिदादयः ।। २४ ।।