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शतानन्द ने कहा एक समय में रूक्ष कृत्यों को करनेवाला वृषभ नामक राक्षस शेषाचल पर आक्रमण कर तदस्श्यिों को सताने लगा । उसके द्वारा तपश्चय्य में बिन्न किये जाने पर मुनिजनों ने भक्तों के अभयकारी श्रीनिवास हृषीकेश के शरण में जाकर जाणिमात्र के न्नष्टा हरि की स्तुति की और भगवान उस मुनियों के सम्मुख प्रकट हुए । मुनिबरों ने बारम्बार स्तुति कर उनकी प्रार्थना की । {३९-४१) 385 मुनय ऊचु भगवन्नरविन्दाक्ष ! वृषभो नाम राक्षसः । सम्बाधते सदा क्रूरस्तपोभङ्गकर ख ।। ४२ तस्माद्रक्ष क्षरातीत भयाद्राक्षसकल्पितात् । बाढमित्युक्तवान्कृष्णो दुष्टमभ्यद्रवदुषा ।। ४३ ।। मुनिगण बड़े-हे कमलनएन भगवान ! तपस्या में विश्व करके वृषभ नामक राक्षस हमें बार-दार सताता है ! हे क्षरातीत {नाश रहित) अर्थास अक्षर परमात्मन ! आप इस दुष्ट राक्षस के भय से इदारी रक्षा कीजिये ! श्री कृष्ण ने

  • तथास्सु ' कहकर क्रोध के ऋाथ उस दुष्ट पर धावा किया । (४९-४३)

स राक्षसो महावीर्यस्तीर्थे तुम्बुरुसंज्ञके । स्नात्वा त्रिषवणं पूण्यां शालग्रामशिलां नृप ।। ४४ ।। नारसिंहात्मिकां दिव्यां सकरालामधोमुखाम् । 'नित्यमाराधयेयाहमिति निश्चित्य पूजयन् ।। ४५ ।। पूजान्ते स्वशिरःपुष्पं खड्गेनाहृत्य भूपते ! । समर्पयामास ततस्तच्छिरः पुनरागतम् ।। ४६ ।। 50 एवं पञ्चसहस्रणि वर्षाणि विगतानि च । तस्मिन्कालेऽरविन्दाक्ष: प्रत्यक्ष: समजायत ।। ४७ ।। .