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395 और पुत्र में क्या आधिक्या वा न्यूनता है। इस प्रकार शेष और वायु इन दोनों महात्माओं में विवाद होने लगा, और {उधर) लक्ष्मीजी से जगाये जाने पर गरुडध्वज मगवान उठे । “शेष क्यों हल्ला मचा रहे हो ? कौह दूसरा पुरुष आया है?”-ऐसा भगवान से पूछे जाने पर शेषजी ने कहा । शेष उदाच मलयाचलवासस्तु वायुरत्यन्तगर्वितः । अकालेऽन्तःपुरं शीघ्र प्रवेष्टुं च समुद्यत ।। ९७ ।। अवाच्यवचनं प्रोक्तमनेनात्यन्तमानिना । इत्याहूतः फणीन्द्रेण भावज्ञेन तथा हरिः ।। ९८ ।। संज्ञापयन्निजं भावमिङ्गितैद्वरमाययौ {९२-९६) शेष ने कहा-मलयाचलनिवासी वायु बड़ा धमण्डी हो गया है । समय में ही आप के अन्तःपुर में घुसने लगा । इतना ही नहीं, इस महा अभिमानी ने बहुत-से अवाच्य वचन भी कहे है । भगवान के अभिप्राय के ज्ञाता शेषजी ने यह कह भगवान को बुलाया । अपने अभिप्राय को इङ्गित द्वारा प्रकट करते हुए भगवान वहाँ आये । (९७-९८) एतस्मिन्नेव काले तु साष्टाङ्ग प्रणिपत्य तम् ।। ९९ ।। वायुस्तुष्टाव पुरुषं ! पुराणं वेदगोचरम् । वायुमालोक्य वचनं वारिजाक्षोऽब्रवीत्स तम् ।। १०० ।। उस समय वायु ने वेदवेद्य पुरारणपुरुष प्रत्यक्ष नारायण को साष्टांग नमस्कार कर स्तुति की । कमलनयन इरि ने बायु को देखकर कहा । (९९-१००) श्रीभगवानुवाच किमर्थ कलहः पुत्र ! शेषेणात्यन्तमानिना' । इत्थं हरेवंगमृतं पीत्वा कर्णपुटद्वयात् । तूष्णीं बभूवं नृपते! वायुरत्यन्तभक्तिनान् ।। १०१ ।।