पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/४२३

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कुन्तलोवाच मा याहि मुनिशार्दूल ! मत्समीपं महामते ! स च तद्वचनं श्रुत्वा सहसा वाक्यमब्रवीत् ।। १५२ ।। 45 कृन्तला ने कहा-हे मुनियों में श्रेष्ठ ! ब्राह्मण इस बात को सुनकर कहने लगा । कुन्तलोवाच मेरे पास यत आइये ! का त्वं कल्याणि ! भद्र ते जननी जनिता च कः ? आवासस्तव भद्रं ते कस्मिन्राष्ट्रे वरानने । सा चेत्थमुक्ता मुनिना जातिमाह मनस्विनी ।। १५३ ।। किन्तु वह (१५२) माधव दे कहा-हे कल्याणि ! तु कौन हो ? तुम्हारे माता-पिता कौन हैं तथा किस राज्य में तुम्हारा लिदास है? मुनि के द्वारा ऐसे पूछे जाने पर कुन्तला ने अपनी जाति बतलायी । {१५३) किं मां पृच्छसि पापिष्ठां व्यभिचारकुलोद्भवाम् । अन्त्यजान्त्यजयोजतां सुरामांसाशिनीं खलाम् ।। १५४ ।। मध्यदेशे निवासो मे किं त्वं पृच्छसि भूसुर । वेदवेदान्तवेदिंस्त्वं न मां द्रष्टुमिहार्हसि ।। १५५ ।। मां स्प्रष्टुं क्रीडितुं वापि कथमिच्छसि मूढधीः' । एवमादि प्रजल्पन्तीं माधवस्तामथाब्रवीत् ।। १५६ ।। कुन्तला ने हा-मुक्त पापिनी, व्यभिचारी चंश में पैदा हुई चण्डालिनी और वासाल से उत्पन्नः मद्य-मांस भक्षण करनेवाली तथा दुष्टा के बारे में क्या पूछते हो? मेरा निवास मध्यदेश में है ! मुझसे क्या पूछते हो ? वेदवेदान्त की काननेवाले तुम्हारे देक्षने से योग्य में नहीं हूँ! मू: बुद्धिवाले तुम मुंझे स्पर्श