पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/४२४

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करने तथा मेरे साथ भीड़ा करने वी क्वी इच्छा रखते हो ? हुई कुन्तला के माधव ने कहा । साथ उवाच इस प्रकार इकती वृथा नारायणाज्जातो ब्रह्मा लोकपितामहः । अन्वमेनं महाराजम्मन्यते में मतिः सदा ।। १५७ ।। वथा यज्जनयामास वनितां दनहेतवे । तथापि मम बुद्धिस्तु त्वय्येव रमते सदा ।। १५८ ।। यतस्त्वय्येव निरतं मनो मे कृतवानजः । अतो मनो मे सम्पूर्य जीवयाद्य शुचिस्मिते ! ।। १५९ ।। (१५६) माधव ने कहा-लोकपितामहं ब्रह्मा ने नारायण से व्यर्थ ही जन्म लिया । मेरौ सफल में यह ब्रह्मा अन्धा है; : क्योंकि उसने तुझ जैसा सुन्वरी को वन में रहने के लिए व्वर्थ ही बनाया । तथापि री बुद्धि सर्वदा तुझमें ही अनुरक्त है । हे पवित्र हास्यवाली ! मरे मन को ब्रह्माने तुझमें लद्या दिथा, अत एव तुम मेरे मनोरथ को पूरा कर मुझे भरने से बचाओ । (१५९) कुन्तलोवाच कुलाटनं प्रकुर्वाणाः कुलमाशतमाकुलम् । दहन्तीति वदन्ति स्म कुलजा वरमानिनः ।। १६० ।। कुन्तला ने कहा-क्षेष्ठ कुलाभिमानियों ने कहा है कि कुल की मर्यादा को उल्लंघन करनेवाले लोग सैकड़ों आकुल-कुलपर्यन्त जला डालते हैं . . (१६०) लवणोदक जातानि रत्नानि विविधानि च । अङ्गीकुर्वन्ति देवाश्च तेजः प्राधान्यकारणात् ।। १६१ । ।