पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/४२७

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

तदा पित्रा जातकर्म कृतं नाम च मन्त्रवत् । अन्नप्राशनचौलादि ब्रह्मवाचनपूर्वकम् ।। १७३ ।। हे ब्राह्मण श्रेष्ठ ! तुम्हारा शरीर विशेष रूप से वेदोच्वार से पवित्र है । क्योंकि ऋत काल में समागम के समय में तुम्हारे नातः-क्षि। छार जो वेद से पवित्र वीर्यदान किया गया है, इसीको गर्भाधान कहते है ? वेद-मन्त्र से सीमन्त संस्कार ठशवस्थित किया है । दसवां मास समाप्त होने पर जब तुम्हारी माता ने तुमको उत्पन्न किया, तब तुम्हारे पिता से जात कर्म, लामकरण, अन्नप्राशन एवं क्षौलादि संस्कार वेद पाठ पूष किये गये : (१७३) अमिसाक्षिविधानेन प्राप्तदारः कृतो भवान् । अधीतवेदशास्रः सन्नाहितामित्रते स्थितः ।। १७४ ।। एतादृशस्य देहस्य मया सङ्गः कथं भवेत् । कृणौ हरिकथाः श्रुत्वा पावितौ नासिका तव ।। १७५ ।। हयैर्पितसुगन्धेन पाविता जठरं तव । वासुदेवापितान्नेन पवित्रं पुरुषर्षभ ! ! १७६ ।। कृष्णार्चनप्रसङ्गेन करी पावनतां गतौ । हरिनामकलापेन जिह्वा ते चान्नात्मिका ।। १७७ ।। पुण्यक्षेत्रानुचारेण पादौ ते पावनीकृतौ । एतादृशेन देहेन कथं सङ्ग प्रशंससि ? ।। .१७८ ।। अग्निसाक्षि विधि से तुम ने दिवाह भी किया है और आहिताग्निन्नस में रकर सुमने बेद और शास्त्रों का अध्यायन किया है । इव प्रकार के शरीर के साथ भेरा संग किस प्रकार हो सकता है? तुम्हारे दोनों कर्ण हरिकथा सुनकर पवित्र हुए है । हरि को अर्पित किये हुए गन्ध से तुम्हंरी नासिका पवित्र ही गयी है ; हे पुरुष श्रेष्ठ ! वासुदेव को निवेदिक्त अन्न हे तुम्हारे उदर, श्रीकृष्ण भगवान की पूजा करने से तुम्हारे दोनों. हाथ, हरि नामकीर्तन से तुम्हारी जिह्वा