पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/४३४

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

15 माधवं पातपाप्मानं यथा हरिरजामिलम् । कृपयोद्धृतवानेनं कृपालुद्विजपुङ्गवम् ।। २१३ ।। इति सञ्चिन्तयंस्तस्य निकटं प्राप सादरम् । जिघ्रश्च तच्छिरः श्रीमान् ब्रह्मा वाणीमथाब्रवीत् ।। २१४ ।। यह देखकर श्रीमान द्रह्मा विमाल से उतरक्ष्ट्र, दक्षालु श्रीहरि ने अजामिव के म्रपान कृपा करके इस ब्राह्मण श्रेष्ठ का उद्धार किया-ऐशा सोचते हुए, निष्पाप माधव के पास पहुँचे और अक्षरपूर्वक उसके मस्तक क्षेो सूक्ते ठुए, यह बात 'भो भो माधव विप्रेन्द्र ! गतपापोऽसि केवलम् । स्वामितीर्थस्य निकटं गत्वा रुन्नात्वा च तज्जले ।। २१५ ।। (२१४) वराहवदनं नत्वा त्यज देहं महीसुर !। महीपालोऽथ भूत्वान्न कुरु राज्यमकण्टकम् । २१६ ।। पाण्डवानां च दौहित्रकुले जातोऽसि कीर्तिमान् । सुधर्मस्य सुतो भूत्वाऽऽकाशनामाथ दक्षिणे ।। २१७ ।। नारायणपुरे वीर ! तोण्डदेशाधिपो भव । तव पुत्री जगन्माता जाम्राता च जगत्पतिः ।। २१८ ।। भविष्यति महाराज ! पश्चाद्वैकुण्ठमाप्नुहि' । हे ब्राह्मणश्रेष्ठ भाधव ! ठेवल स्वरितीर्य के पास जाकर उसके जल में स्नान करने से ही तुम निष्पाप हो चुछे । अज् वराह मग्नन् को नमस्कार छरके छपने शरीर को छोड़ दो ; पश्क्षत् िराजा होहार अंकट राज्य करो ! तुम पाण्डवों के दौहित्र कुल में लीभित होकर उत्पन्न हुए थे ! (जन्यान्तर में) अव सुधर्मका पुत्र याकाश नाम राजा होझर दक्षिण फे नारायपुर में तोण्डदेश का स्वामी हो । जगन्भाता तुम्हारी पुत्री एवं इत्पति तुम्हारे जामाता {दामाद) होंगे । तत्पश्चात वैकुण्ठ को प्राप्त होवोगे । {{२१८)