पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/४३७

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

श्रीभगवान का वैकुण्ठ से श्रीवेङ्कटाचल पर आना जनकने हा—वायुदेव ने श्रीशेषजी से कहा था कि श्रीभगवान झागे । इध प्रकार पहले जो आपने कहा, वह मुझे विस्तारपूर्वक दिये ? श्री नारायण भगवान किस कारण से और किस एकार आये एवं वहाँ आकर क्या क्रिया, वा मुझसे िवस्तारपूर्वक कहिये। पुरुषोत्तम भगवान ने किस प्रकार श्री वैकुण्ठ को छोड़ दिया, विष्णु के चरित्र, तथा माहात्म्य, और तीयों एवं पर्वतों के माहात्म्य को, उस आकाश नामक राजा के चरित को जिनकी पुत्री श्रीलक्ष्मीदेवी एवं पुट संसार के स्वामी हुए, एवं यह व देवताओं, ऋष्टियों, देवताओं को स्खियों के समागम की विस्तार से कहिये । (५) सात्विकदेवतापरीक्षार्थ भृगोः सत्यलोकादिगमनम् 'पुरा तु ऋषयः सर्वे कश्यपाद्या मुनीश्वराः। तस्मिन् काले मुनिश्रेष्ठो नारदो मुनिसत्तमः । उवाच वचनं विप्रान् किमर्थोऽयं ऋतूत्तमः ।। ७ ।। को वा भुङ्क्ते यज्ञफलं को वा ध्येयः सुरोत्तमः कृतयज्ञफलं कस्य चाप्यते मुनिसत्तमाः ।। ८ ।। । सात्विक देवता की परीक्षा के लिए भूगुमुनि का सत्यलोकादि में जाना शतानन्द ने कङ्का-प्राचीन समय में काश्यपादि ऋषि, मुनीश्वर और ब्राह्मण थे । सब श्रीगङ्ा के तीर पर सन्तोष से यज्ञ कर रहे थे ; उस समय सुनियों में श्रेष्ठ नारदजी यह बात ब्राह्मणों से बोले--यद् उत्तम यज्ञ ति