पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/४३८

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लिये है? करने हे यो 420 यज्ञ फल हो कौरु भोगता है? कौन श्रेष्ठ देवता आराधना है? कये हुए यज्ञ के फल कउको दर्पल किये जाते हैं? इति नारदवाक्यं तु श्रुत्वा ते मुनिपुङ्गवा । संशयार्थ समापन्नाः कथमत्र विचार्यताम् ।। ९ ।। सम्मिलित्वा तदा सर्वे भृगुं ब्रह्मविदां वरम् । तमूचुर्भक्तिनम्राङ्गाः कृताञ्जलिपुटाः स्थिताः ।। १० ।। 'गच्छ शीघ्र महाबुद्धे ! परीक्षार्थ सुरोत्तमान्' । नारद छे इस वचन को सुनकर इस िवषय में कैसा निर्णय करना चाहिये -- ऐसे सन्देह की प्राप्त हुए वे ऋषिश्रेष्ठ उद मिलकर ग्रह्मशानियों में श्रेष्ठ भृगुमुनि से भक्तिपूर्वक, नम्रशरीर हो, हाथ जोड़कर खड़े होकर बीले कि है महाः बुद्धिवाजे ! उत्तम देवताओं की परीक्षा के लिएँ आए बाइये । (१०) इति तेषां वचः श्रुत्वा ययौ कञ्जजमन्दिरम् ।। ११ ! . तत् दृष्ट्वाष्टबाहु त सक्षाद् ब्रह्माणमग्रजम् । चतुर्मुखमुदाराङ्ग सरस्वत्या सुसेवितम् ।। १२ ।। चतुरास्यसमुद्भूतवेदघोषविराजितम् । दिक्पालकगणैः सार्ध कीरीटमकुटोज्ज्वलम् ।। १३ ।। स्तुवन्तं जगदीशानं नारायणमनामयम् । प्रणमन् भक्तिभावेन मदीप्तिविरोजितम् ।। १४ ।। पातयामास कायं स्वं पुरतः कञ्जजन्मनः । उनके इस प्रकार के वषम को सुनकर भृगुमुनि ह्मा ६ मन्दिर में गयै । वहाँ पर उस झाठ दाहुवालै, अग्रजन्म, चार मुखवाखे, उदार अंगवाले, सरस्वती से