पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/४४

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26 इस वेंकट पर्वत के जितने माहात्म्य है उनको श्री चतुर्मुख ब्रह्माजी भी कहने में असमर्थ हैं। पण्मुख कार्तिकेयजी, सहस्रमुख शेषजी इत्यादि सभी देवता इसके गुण कथन में असमर्थ हैं । तो औरों की बात ही क्या? (३६,६७) श्रुत्वा सूतमुखाच्चैवं मुनयो हृष्टमानसाः । न तृप्तिमाययुस्ते हि भूयः श्रवणकौतुकात् ।। ३८ ।। श्री सूतजी के मुख से इसका इस प्रकार गुण-माहात्म्य सुनकर सभी मुनिगण परम हर्षित हो और सुनने की चाह रखते हुए तृप्ति को न पाया । (३८) इति श्रीवराहपुराणे श्रीवेंकटाचलमाहात्म्ये क्रीडाद्रि प्रविष्ट श्रीवराहदिव्यवैभवादिवर्णनं नाम षट्त्रंशोऽध्यायोत्र चतुर्थः ।