पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/४४९

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3 खङ्क नाम का कोई राजा केवल स्नान नाद से ही राज्य पाया । प्राचीन सभय में अङ्गिरा के पुत्र नारायण नामक एक ब्राह्मण श्री स्वामियुष्करिणी तीर्थ में स्नान के माहात्म्य से ही हरि क्षे दर्शन कर वरदान पाया वैकुण्ठ गये । पहते श्रीराम ने भी वहाँ पर स्नान करने से खोयी हुई सीता छो पाया था । इस प्रकार यहाँ पर ब तीर्य में श्रेष्ठ श्री स्वामिपुष्करिणी है । उसके पश्चिम दिशा में श्री वराङ्क भगवान पीपल वृक्ष के नीचे पृथ्वी को आलिङ्गत् करते हुए, वल्मीक में विराजभान है । यह पर्वत तीन करोड़ तीर्थों को जन्मस्थान है । (११) एनं गिरिवरं प्राप्य भगवान्वेङ्कटाचलम् । वैकुण्ठाधिकं मत्वा विचचार ततस्ततः । न प्राप किंचिदास्थानं हनार्थ रमापतिः ।। १२ ।। इस पर्वतश्रेष्ठ श्रीवेङ्कटाचल को प्राप्त कर, श्रीभगवान इसको वैकुण्ठ से भी अधिक मानकर वहाँ पर घूमने लगे, पर उन्होंने छिपने के लिए कोई स्थान (१३) श्रीनिवासस्य स्वामितीर्थपश्चिमतीरस्थवल्मीकप्रवेशप्रकारः इत्थं विचार्यमाणे तु स्वाभिपुष्करिणीतटे । दक्षिणे विमलं दिव्यं वल्मीकं दृष्टवान् भुदा ।। १३ ।। तिन्त्रिणीवृक्षमूलस्थं भगवाञ्जगदीश्वरः । मत्वेदं परमं स्थानं तत्र लीनोऽभवद्धरिः । एवं देवे स्थिते तत्र विगतं वत्सरायुतम् ।। १४ ।। श्रीनिवास भगवान का स्वामितीर्थ के पश्चिमभागस्थित् वल्मीक में प्रवेश करना यही विचार करते हुए भगवान जगदीश्वर ने स्वामिपुष्करिणी के तट पर दक्षिण में तिविणी (इमली) के मूल में दिव्य और स्वच्छ वल्मीक को आनन्द से