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27 महर्षियज्ञवाटं प्रति भगवदागमनम् सूत उवाच :- 'तद्गिरौ कि कृतं तेन वेङ्कटेशेन तद्वद' । इत्युक्तं यच्च युष्माभिस्तत्र किञ्चिद्वदाम्यहम् ।। १ ।। मायिना सर्वशत्तेन लीलापरवशेन च । कृतं तु वक्तुं कात्स्न्येन केन शक्यं तपोधनाः ! ।। २ ।। स कदाचिन्महामायी विटवेषं वहन्मुदा । गिरावुत्तरदिग्भागे चचार रमया सह ।। ३ ।। इस पञ्चम अध्याय में, यज्ञ दाह का यज्ञ । है प्रसन्न शोभित सगण, आये जहं सर्वज्ञ ।। १ ।। रमा, रमापति ईशको , बदले देखा रूप ! पूछा परिचय, ब्रह्मम ऋषि, उत्तर मिला अनूप ।। २ ।। पुनि मुनि के अनुरोध से, लक्ष्मी अरु भगवान् । यज्ञ भाग को ग्रहण कर, मुनि िहँ दियो वरदान ।। ३ ।। जरा-युक्त द्विजने किया, धार स्नान कुभार । हुआ तभी से पुण्य सर, प्रचलित धार कुमार ।। ४ ।। ब्रहण कथन कुमार से, वर्णन महिमा धार । सेचन फल आदिक सभी, वर्णित यहाँ विचार ।। ५ ।। महर्षियज्ञवाट के पास भगवदागमन श्री सूतजी बोले:-हे मुनिवृन्दो, आपने जो यह पूछा कि श्री वेंकटेश ने उस पर्वत पर क्या-क्या किया उसका कुछ उत्तर में देता हूँ । मायावी सर्वशक्तिमान लीलानिकेतन् भगवान ने जो जो लीलाएँ और कृत्य किये हैं उनमा सम्पूर्ण