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432 देद्या । इसको उत्तम स्थान मानकर भगवान उसमें लीन हो गये । भगवान को ठहरे झुए दश हजार वर्ष बीत गये । अतीते द्वापरे चैव त्वष्टाविंशतिमे कलौ । अतीते वत्सरे कश्चिच्चोलराजो नृपोत्तमः ।। १५.)। अवतारं समापन्नो नागकन्योदरे तथा । वहाँ पर द्वापर के बीत जाने पर अट्ठाहसर्वे कलियुग में एक संवत्सर श्रीतने पर किसी राजाओं में श्रेष्ठ.चोल देश के स्वामि ने ए नागकन्या के उदर है अवतार सिया । (१५) (१४) तस्मिच्छासति भूखण्डं बहुपुण्यफलप्रदम् ।। १६ ।। बहुक्षीरप्रदा गावः पुत्रा वै पितृवत्सला । काले ववर्ष पर्जन्यः सस्या वै बहुधान्यदाः ।। १७ ।। नार्यः पतिव्रताः सर्वाः पुरुषाश्च सतीव्रताः । इत्थं शासति राज्यऽस्मिञ्जना आनन्दतत्पराः ।। १८ ।। उसके शासनकाल में पृथ्वी बहुत पुण्य के फल को देनेवाली, गायें बहुत दूध देनेवाली तथा पुत्र पिता को अक्त हुए ' मेव समय पर वर्षा करने लगे । कृषि बहुत धान्य देनेवाली, सब स्त्रियाँ पतिव्रता एवं सब पुरुष एकपत्नीब्रतवाले हुए । इस प्रकार इस राजा के शासनकाल में मनुष्य क्षानन्द में मर थे । (१८) आकाशनृपगृहे ब्रह्मादीनां धेन्वादिरूपेण ििथः तस्मिन्काले विधिः साक्षाद्धेनुरूपं समाश्रितः । ब्रह्मधेनोः पालिकाऽभूद्वोपाली कमलालया ।। १९ ।। साक्षाद्रुद्रो वत्सरूपी ताभ्यां चेयं समागता । पश्यन्ती पतिमार्गन्तु चोलराजं समभ्यगात् ।। २० ।। विक्रीय गां महालक्ष्मीर्जगाम निजधाम च ।। २१ ।।