पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/४५१

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433 आकाशराजा के घर र ब्रह्मादिकों को गोइत्याट्टि के रू ॐ ठहरन्ना उस समय साक्षात ब्रह्मा ने यौ का रूप धारण किया १ लक्ष्मी उी ब्रह्मा-रूपी गौ का पालन करनेवाली ग्वालिली हुई : साक्षात विवाजी ने वत्स का रूप धारण किया । इस प्रकार स्वाॉम के मार्ग को देखती हुई वह ग्वालिनी उन दोनों गौ और बछड़े के साथ बोझराज के पास झालीं आर बंद महालक्ष्मी चोलराज के घर पहुँचार पछड़ा के साथ गौ को बेचकर मूल्य लेकर अपने स्थान को गयीं । (२१) गृहीत्वा तां महीपालो सुदमपि प्रियान्वितः । बहुक्षीरप्रदां तां सः पुत्रार्थमकरोत्तदा ।। २२ ।। ततो धेनुसहस्रण साकं श्रीवेङ्कटाचले । सा गौर्जगाम नित्यं तु रमानाथं विचिन्वती ।। २३ ।। तत्र तत्र समाजिघ्रन्भूधरेन्द्रे वृषाकपिम् । विचिनोति स्म सर्वत्र धेनुरूपी विधिस्तदा ।। २४ । उन्होंने उस बहुत दूध देनेवाली गाय को पुत्र के लिए रख दिया । हजार गौओं के साथ बद्द गौ लक्ष्मीपति भगवान को ढूंढ़ती हुई प्रतिदिन श्री वेङ्कटाचल को साती थी और वहाँ उस श्रेष्ठ पर्वत के स्थान-स्थान पर सर्वत्र क्षी व धेनु-रूपी ब्रह्मा सूधते हुए भगवान वृषाकपि को ढूंछले लगे । (२४) 56 ततः कालेन महता स्वामिपुष्करिणीतटे । वल्मीकस्थं हरिं ज्ञात्वा तुतोष मनसा विधिः ।। २५ ।। समसिञ्चच्च वल्मीक समन्तात्क्षीरधारथा । तदा प्रभृति नित्यं तु राजधेनुगणैः सह ।। २६ ।।