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28 वर्णन कौन कर सकता है? वही मायावी परमात्मा किसी समय ऐय्याश का रूप धारण कर पर्वत के उत्तर भाग में रमा देवी के साथ विचारण कर रहे थे । (१०३) तत्र काचन्महाभागा मुनयस्तत्वदाशनः । गिरेरस्य तु माहात्म्यं श्रुतवन्तस्तपोधनाः ।। ४ ।। अयं गिरिर्महापुण्यः सर्वसवसमाश्रयः । निबधः फलमूलाढ्यः सर्ववृक्षसमावृतः ।। ५ ।। नानाप्रस्रवणोपेतो यज्ञियैश्च महीरुहैः । अन्यैस्तापसयोग्यैश्च पादपैरपि सङ्कलः ।। ६ ।। नयनानन्दजनको हृदयाह्लादकारकः । अस्माभिः सर्वदा वासः कर्तव्योऽत्र महागिरौ ।। ७ ।। इति निश्चित्य मनसा तत्रागत्य तपोधनाः । चक्रर्यज्ञ यथाशास्त्रं विष्णुमुद्दिश्य कौतुकात् ।। ८ ।। वही पर कुछ ऋषिगणों ने, जो परमतत्वदशी? एवं महाभाग थे, इस पर्वत का माहात्म्य सुनकर वह पर्वत महापुण्यप्रद, सब प्राणियों का आश्रयस्थान, निबध अनन्त फलमूलों से परिपूर्ण, नाना भांति के वृक्षों से समाकीर्ण, तथा अनन्त झरनादि से युक्त, यश लायक वृक्षों से समाश्रित बड़े-बड़े तपस्वियों के निवास योग्य वृक्षों से भरा हुआ तथा आँखों एवं हृदयों को आनन्ददायक है । अत एव सर्वदा यही निवास किया जाय-ऐसा निश्चयकर वे लोग उस पर्वत पर आकर यथा साध्य विष्णु के उद्देश से तथा परम उत्कण्ठ से एक महायज्ञ किया । (४-८) सोऽपि मायी स्त्रिया सार्ध यज्ञवाटभुपागमत् । सुवर्णचित्रितं वस्त्रं वसानः शुभदर्शनः ।। ९ ।। सोष्णीषश्च करेणैव वामेन छुरिकां दधत् । ताम्बूलेन शुचिस्निग्धमन्दस्मितमुखांबुज ।। १० ।। मृगोत्थमदगन्धेन सुरभीकृतदिङ्मुखः । पुण्डरीकविशालाक्षः कम्बुग्रीवो महाभुजः ।। ११ ।।