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43 अक्ष रुप कलियुग हो तश्च शक तू दुःखी होओो ! सत्य संकल्प के दोष से हम दोनों पुःखी हुए है ! आकाश नाम का एप्त श्रेष्ट राजा होगा, वह मुझको अपनी पद्मावसौ नाम की सुन्दरी कन्या देगा ; एवं कन्यादान के समय में रत्न छऔर वव से जड़ा हुआ सौ भारका किरीट तिलझमें देगा । शुक्रवार क्षे सन्ध्या सुभय मैं उस किरीटको धारण करूंगा । किीट धारण करने से छः घड़ी बाद १क मेरी शांखे जलसे शर ज:यंगी, तब तुमको सुख होगा । इस प्रकार अगवान् ने अपने और राजाको सभाकी अवधि ठीक कर, सुखजे समयको बताकर, अपने अवतार का प्रयोजन तथा चरित एवं कलियुग में न्या के ग्रहण करने के बारे में कहा !).२२ ।। इति सम्भाष्य राजानं तत्रास्ते भगवान् हरिः । क्षतशान्त्यर्थमाकांक्षन्वैद्यशास्त्रविशारदम् ।। १३ ।। गुरुं सुरपतीनां च सस्मार जगदीश्वरः । आगतं च गुरुं दृष्ट्वा स्वौषधं वद मे द्रुतम् ।। १४ ।। भगवत्क्षतापनोदनाय गुरुकृतविकित्साप्रकारः इति तेन समाज्ञप्तो जीवो जीववतां वरः । क्षीरमौदुम्बरं देव ! तथा कासिमर्कजम् ।। १५ ।। मेलयित्वा रमाकान्त तत्क्षतोपरि धार्यताम । इत्येवं गुरुणाऽऽज्ञप्तस्तच्चकार यथोदितम् ।। १६ ।। भगवान् के व्रणके लिये बृहस्पति द्वारा की हुई चिकित्सा राजासे इस प्रकार वार्तालाप कर. वादीश भगवान् अपने धावझे. आराम होने के लिए वैद्यकशास्रके विद्वान् क्षी प्रतीक्षा करते हुए अहाँ रहे और इन्द्र के गुरु का स्मरण किया ! घाये हुए गुरु [बृहस्पति) को देखकर उन्होंचे कहा कि आप मुनते शीघ्र औषध बताइपे ।. इस प्रकार भगवान् की आशा पाकर सबं जीवों में श्रेष्ठ बृहस्पति ने कहा-हे देव !. हे रमाकान्त ! गूलर के दूध में अकबन (आक) की रुई मिलाक्षर इत व्रण के ऊपरो रखिये । धृहस्पति से ऐसा ‘कहे जाने पर इरिने उनके वाथनानुसार ही किया ।। २६ । ।