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456 तत्रापि वेङ्कटगिरेर्दर्शनं युक्तिदं परम् ।। लभे देवसङ्घानां मनुष्याणां तु का कथा ।। ५५ इति श्रीभविष्योत्तरपुराणे श्रीवेंकटचलमाहात्म्ये पद्भाधतीपरिणयोपो द्घातादिवर्णनं नाम पञ्चमोऽध्यायः ।। ५ ।। इस क्षेत्र का माहात्म्य और तीर्थो का वैभव (दिव्य) अलौकिक है । जहाँ पर शाक्षात लक्ष्मीपति है, वहाँ पर पुण्य की तो बात ही क्था है। बहुत अन्भ में उपाजित पुण्य से क्षेत्रों के दर्शन मिलते हैं। सिपर भी श्रीवेंकटावल का मुक्ति नेवाला दर्शन देवताओं को भी दुर्लभ है, मनुष्य की तो हात ही क्या? (५)