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460 मृगाया के समय में श्रीनिवास का कन्या देखना उन्होंने इधर-उधर घूमकर बहुत तरह के इरिण, सिंह, शार्दूल, जम्बूक, हाथी, घोर, शरभ तथा अँस्रों के उस वन में मारा । वहाँ एक मद से उन्मत्त वनचर हाथी की देखकर उधुको मारने के लिए लक्ष्मीपति उसके पीछे-पीछे गये। वह भगवान् से बहुत भयमीत होकर, जंगल में दूर चला गया । आधा योजन जाने पर हाथी शुण्ड उठा जनार्दन भगवान् को दण्डवतकर, गर्जता हुआ जब चला गया, तभी एक कन्या दृष्टिगोचर हुई ! ऋषय ऊचुः सा कन्या कस्य सम्बद्ध किमर्थ वनमागता ? । कस्येयं तनया कन्या तद्वदस्व महामुने ।। १९ ।। इति तैश्च स विज्ञप्तः सूतः परमधार्मिकः । उवाच वचनं भक्त्या सन्तोषाद्युक्तमानसः ।। २० ।। ऋषि बोले-“हे महामुनि, वह अन्य बहा जंगल में क्यों आयी तया यह झन्या किसकी पुत्री थी, सो हमसे कहिये ! इस प्रकार उनसे कहे जाने पर परम धर्मात्मा सूतजी सन्तुष्ट मन होकर भक्तिपूर्वक वचन बोले । (२०) श्रीसूत उवाध श्रुण्वन्तु मुनयः सव कॅन्याया जन्म पावनम् । श्री सूतजी बोले-हे भुनिगण ! कुन्या के पवित्र जन्म को सुनिये । पुरा तु द्वापरस्यान्ते पाण्डवानां महात्मनाम् ।। २१ ।। युद्धे तु भारतेऽतीतेत्वष्टाविंशे कलौ युगे । विक्रमार्कादयो भूपाः स्वर्गलोकं यदा ययुः ।। २२ ।। तत्कालान्ते वत्सरेषु साहस्रषु गतेषु वै । चन्द्रवंशे नृपः कश्चित्सुवीर इति विश्रुतः ।। २३ ।।