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46 जज्ञे सुधर्मस्तत्पुत्रस्तत्सुतौ नृपपुङ्गवौ । आकाशतोण्डमानाख्यौ जातौ लोकयशस्करौ ।। २४ ।। धर्मिष्ठौ दृढभक्तौ तु नारायणपरायणौ । ज्येष्ठो वियन्नृपः साधुः कनिष्ठस्तोण्डमान्नृपः ।। २५ ।। तोण्डदेशाधिपो भूत्वा शशास पृथिवीमिमाम् । पहले द्वापर के अन्त में महात्मा पाण्डवों के महामारत युद्ध के बी जावे पर अट्ठाईसवें कलियुग में जब विक्रमादित्य इत्यादि राजा स्वगको चले गये, उसी समय के अन्त में हजार वर्ष बीतते पर चन्द्र वंश में कोई एक सुवीर नामक प्रसिद्ध राजा हुआ । छलका पुत्र सुधझै हुआ । संसार में यशस्वी, धर्मात्मा , वृद्भक्त, तोण्ड देश का स्वामी होकर इस पृथ्वी का शासन करने लगे । तस्मिञ्छासति भूचक्रमिदं स्वर्ग इवाभवत् । निरातङ्कमभूत्सर्वं जगत्स्थावरजङ्गमम् ।। २६ ।। गावो बहुपथोदाश्च नार्यः पतिपरायणाः । (२५) उनके शासन के समय में वह भूमण्डल स्वर्ग के तुल्य हो गया । संशोर के स्यावर और जंगम सभी निर्भय हो गये ! गाँएँ बहुत दूध देनेदालौ और स्त्रियाँ पतिन्नता थीं । (२५) कदाचित्पुत्रकांक्षी स ह्येकान्ते भवने स्थितः । अपुतो नृपतिःखात् गुरुं प्रोवाच भक्तितः ॥ २ २७ ।। । किसी समय वह अपुख राजा पुत्र के इच्छुक हो दुःखी होकर एकान्तभबन में गुरु से भक्तिपूर्वक बोले । । . (२७)