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30 कमलाक्ष भगवान को देखकर सब मुनियों ने उनके साथ आयी हुई (लक्ष्मीजी) स्त्री को भी देखा जो वेश्या-वेष में था तथा अपने हस्तकमलों में लीला कमल धारण किया था । वह रुपाये हुए सुवर्ण के समान शोमायुक्त थी, केशर के रंग की प्रभा तया हल्दी की उद्दीप्त प्रभा के समान चमकती थी। वह धुंधराले केश-कलाप से सुशोभित, शरत्काल के पूर्णचन्द्र के समान मुखवाली तथा ताम्बूल से सुशोभित थी। वह कानों के पास तक फैले हुए युगल नेत्रवाली सूर्य की चमक को भी फीकी करती हुई अभूतपूर्व मनोहरतायुक्त साक्षात् श्री लक्ष्मीजी के समान रूप धारण किये हुये थी । इन दोनों को देखकर सभी मुनिवर्ग आनंद से परम प्रफुल्लित हो गये और आपस में कहने लगे कि यह कौन पृथ्वी के शासन करने योग्य राजपुत्र हैं? बत्तीसों लक्षणों से समलङकृत ये दूसरे राम के समान मालूम होते हैं। पूछना चाहिए कि यह क्रिसलिये आये हैं? यह सब विचार कर उन लोगों ने उनसे कहा कि हे राजन, आपका निवास-स्थान कहाँ है, आपके माता-पिता कौन हैं तथा आपका नाम क्रया है, यह सब अशेष रूप से बतलाइए । (१३-१९) श्री भगवानुवाच :- नाहं राजा न वा विप्रः काचिज्जातिश्च नैव मे । न च माता न च पिता नैवाऽवासश्च कुत्रचित् ।। २० ।। सर्वावासः सर्वभक्षः सर्वगः सर्वरूपधृक् । निर्नामा निर्गुणश्चाहं युष्मान्द्रष्टुमिहागत ।। २१ ।। भवन्तस्तपसा श्रेष्ठा वेदवेदान्तपारगाः । वदन्त्वौदुम्बरी सर्वा वेष्टिता व्याघ्रवाससा ।। २२ ।। स्पृष्ट्वोद्गानं कथं त्वत्र सम्भवेन्मुनयोऽमलाः । एवमादि क्रियालोपं पृष्टवान्यज्ञसंसदि ।। २३ ।। तत्पश्चात श्री भगवान कहने लगे हे मुनियों ! न मैं राजा हूँ, न ब्राहमण, न तो मेरी कोई जाति ही है, न मुझे माता, पिता हैं, न मेरा कहीं मकान ही हैं। मेरा वास सभी स्थानों में है, सब कुछ हमारा भक्ष्य है, मैं सब जगह जा सकता हूँ और सयका रूप धारण कर सकता हूँ। मैं निर्नाम एवं निर्गुण हूँ और आप लोगों को ही देखने आया हूँ । आप सब वेद वेदान्त-ज्ञाता, बड़े ही तपस्वी और श्रेष्ठ हैं,