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464 गर्भ से उत्पन्न हुए पुत्र से मेरा सुन्दर कुल कब सुशोभित होगा? “तृ दुष्ट बुद्विवाला, दुराचारी एवं अपुत्र है' इस प्रकार से यमराज के कहे हुए वचनकी सुनकर कौन पुरुष सुखी हो सकता है?' दीपक भुक्ता हुआ, बहुत निष्ठुर, कष्ट से उत्पादित शरीरवाला एवं अपने को नरक में ले जानेवाला पापात्मा, तू व्यर्थ पैदा हुआ ; तन्तुहीन (पुत्रहीन) कुल, विना जलको बावड़ी तथा विधबा स्त्री को छोड़ दो' ऐसा सज्जनगण भी सभा में निन्दा करते है। हे भूदेव ! क्या करूं ? कहाँ जाऊँ ? किस देवता की चरण में जाकर संसार-समुद्र पार हो जाऊँगा (४०) , , रुदन्तं पुत्रमालोक्य कदा प्रेम्णा तमाह्वये ।। ४१ ।। धण्टां द प्रतिमां दत्वा पुत्रस्य फलकन्दुकौ । गजमारोप्य भां तात ! कुर्वन्ग्रामप्रदक्षिणम् ।। ४२ ।। सभां गच्छाथ राजेन्द्र ! तथा तालुस्वनेन च । इति पुत्रेण सोत्कण्ठं कृतौ मञ्जुलभाषिणा ।। ४३ ।। कदाचिदपि नैवाहं श्रुतवान्प्रार्थनामिति ? । अजातपुत्रः शोकेत भूच्छीमाप महीपतिः ।। ४४ ।। रोते हुए पुत्र को देखकर कब प्रेम से उसको घंटा, पुतली, फल और गेन्द देकर बुलाऊँगा ? “हे तात ! हे राजेन्द्र ! मुझ को हाथी पर चढ़ाकर गाँव की प्रदक्षिणा कराते हुए ताली बजा सभा में जाइये "-इस प्रकार मधुर बोलवेबाले पुस्र से उत्कण्ठपूर्वक' की गयी प्रार्थना को मैंले कभी भी नहीं सुना, ऐसा कते हुए अजातपुत्र व आकाश राजा शोक्ष से सृछित हो गये ! (४) पुनः संज्ञामवाप्याथ विललाप सुदुःखितः । कवचं कारयित्वा तु शिरोभूषणमथ्यथ ।। ४५ ।। केशभूषणमप्यर्थ रत्नवज्रसमाकुलम् । कदाचिदङ्कमारोप्य त मयालङ्कृतः सुतः ।। ४६ ।।