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470 राजाने उसी क्षण जात कर्म इत्यादि संस्कार किये; बारयाँ दिन आदिपर ऐसा नाम रखा, जिससे वह वसुदाता इस प्रकार संसार में प्रसिद्ध होगा और उस दिन भी उस राजाले अन्न इत्यादि से बहुत ब्राह्मणों को सन्क्षुष्ट किया है (७३) ऋषय ऊचुः श्रुत पुत्रस्य चारत न श्रुत व्यासवल्लभः ! अयोनिजायास्तत्पुत्र्याः किं नाम च तदाऽकरोत् ।। ७४ ।। ऋषि बोले-हे व्यासप्रिय ! हमनै पुत्रा चरिद्ध सुना, उस आयोनिजा पुीका उसने क्या नाम रक्ख सो नहीं सुना । पृद्माया अवतारां तां मत्वा तस्यास्तदाऽकृरोत् ।। ७५ ।। अनुरुपं नामकर्म नाम्दा पद्मावतीति च । श्रीसूत जी बोले-कमलक्रे ऐसे उदरवाली, ऋमलके गर्भसे छदपन्त, श्रेष्ठ भुखवाली उस पुत्री को लक्ष्मीका अवतार जानकर उसके अनुरुप “ पन्ग्रावती (७५) वर्धमानौ सुतौ दृष्ट्वा राजा सन्तोषमागतः ।। ७६ ।। अकलङ्कन्दुसदृशौ रमाचन्द्रमसाविव ।। किं तेन सुकृतं राज्ञा बहुजन्मसु सञ्चितम् ।। ७७ ।। अग्रजां पुलिकां दृष्ट्वा तदन्ते पुत्रमुत्तमम् । दृष्ट्वा तुतोष मनसा सम्पूर्णानन्दविभ्रमः ।। ७८ ।। निष्कलकं चन्द्रमाके जैसा या लक्ष्मी और चन्द्रको समान बढ़ते हुए सन्तानको देखकर राजा संतुष्ट हो गये । उस राजाले किस पुण्यका बहूत -जन्भ से सञ्चय किया था कि वह पहले उत्पन्न पुढी को देख फिर उत्तम पुत्र को भी देख पूर्ण आनंद से विभ्रान्त होकर प्रसन्नचित्त हुएं । : .. (७८)