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31 कृपया यह बतलाइए कि समस्त औदुम्बरी स्तम्भ को व्याघ्रचर्म से लपेटकर पुनः उसको स्पर्श करते हुए क्या गान करते हैं ? इत्यादि अनेक क्रिया-लोप का प्रश्न उसी यज्ञ सभा में पूछा । (२०-२३) मुनयस्तेऽथ संभूय वपाकालस्तु गच्छति । इति ते त्वरिताः सर्वे समिद्धे जातवेदसि ।। २४ ।। पुण्यगन्धं वपाहोमं चक्रुः शास्त्रोक्तमार्गतः । सोऽपि वेगात्तत्र गत्वा शङ्खचक्रगदाधरः ।। २५ ।। श्रीवत्सवक्षा नित्यश्रीः सर्वाभरणभूषित । वपां जग्राह पाणिभ्यां कोटिसूर्यसमप्रभः ।। २६ ।। तदा तु मुनयः सर्वे प्रभया स्तिमितेक्षणाः । तस्थुस्तपोधनास्तत्र क्षणं चित्रापिता इव ।। २७ ।। 'प्रीतोऽह' मिति तान्सर्वानुक्त्वाऽदृश्यो बभूव ह । तब मुनियों ने एकत्र होकर उनका यथारीति समादर किया और थपा होम काल व्यतीत होता जानकर अति शीघ्रता से ग्रज्ञाग्न्-िवेदी में पुण्य गंध युक्त वपा होम शास्त्रीक्त विद्धियों से समाप्त किया । वे भी श्रीवत्सवक्ष नित्यश्री, सध आभूषणों से विभूषित कोटि सूर्यसम प्रभादाले शंखचक्रगदाधारी होकर अति शीघ्र जा उनके होम किये हुए धपा को दोनों हाथों से स्वीकार किया । उनको उस अपूर्वं प्रभा से सभी मुनिगण एक क्षण के लिए चकाचौंध हो चित्रवत् चुप खड़े रह हो गये । यह देखकर भगवान उनसे “मैं बहुत प्रसन्न हुआ " ऐसा कहकर अदृश्य हो गये । (२४-२७) मुनयश्च तदा प्रीताः 'साक्षाद्विष्णु स्समागतः ।। २८ ।। अस्माकं भाग्यमतुलं जीवितं च सुजीवितम्' । इति यागक्रियाशेषं चक्रुः कौतुकसंभ्रमात् ।। २९ ।। एतत्सर्वं समाख्यातं जाबालिमुनिना पुरा । अन्यच्च कथितं तेन तच्चाहं कथयामि वं ।। ३० ।।