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474 अधरं रक्तपद्माभं जिह्वा मृदुतरा शुभा । अरालालकसम्बद्धा श्यामला भाति वेणिका ।। ९५ ।। ललाटं रत्नपीठाभं श्रोत्रे शष्कुलिकासमे । तनुस्ते मन्मथाकारप्रतिमाऽप्रतिमप्रभा ।। ९६ ।। कृण्ठ: सूर्थाशुसदृशस्ताम्बूलरसदर्शक स्तनौ पीनौ घनौ कुब्जौ शुभौ ते मग्नचूचुकौ ।। ९७ ।। उदरं कदलीपर्णसदृशं निम्ननाभिकम् । कटिस्तव करिध्वंसिकटिसाभ्ययुता शुभा ।। ९८ ।। रम्भास्तम्भसमाकारं तवोरुयुगुलं रमे । पृष्ठं ते वेदिवद्भाति किं त्वया सुकृतं कृतम् ।। ९९ ।। गमनं करिराजस्य सदृशं ते वररात्ते । नारदजी बोले-हे धर्मज्ञे ! हे स्मे ! तीनों लोकोंके मालिक रमापति तुम्हारे पति होंगे, क्योंकि तुम्हारे हाथ कमलके दलसे युक्त, चरण स्वस्तिकसहित और आयत, मुख चन्द्रमाके समान आकारवाला, वेछ कमलकी झलीके समान, नासिका तिलके फूलके समान शोभायमान, कपोल दर्पणके समान चमकीले, भौंहे धनुष के समान, दत्त दाड्मिके बीज के समान प्रञ्चाशदाले, मुख करके पातये ससान सुगन्धित, ओष्ठ लाल कमलके समान रंगवाले, जिह्वा मुलायम और सुन्दर, चोटी कुटिल देशोंसे बन्धी हुई एवं श्याम, ललाट रत्नके पीठके समान वमकीला, कर्ण शष्कुली (पृड़ी) के समान, शरीर कामदेवके थाकारके समान, क्षण्ठ सूर्यकी किरणोंके समान तथा ताम्बूलके रसक्रो दिखावेवाले, स्तन कठिन, यीन, उन्नत तथा दबे हुए चूचुक्षवाले, उदर केलाके पढके समान तथा नीची नामिवाला, कटि ऋाथीको नाश करखेवाले सिंहकी झटिक्रे समान्, ऊरु केलेके स्तम्भके आकारवाले तथा पृष्ठ वेदीदे समान सुन्दर है ! तुमने कौन-सा. पुण्य किया था? हे वराभने ! तुम्हारी वाल श्रेष्ठ ऋायीके समान है । (९)