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48 इति सख्या समाज्ञप्तास्ता ऊचुर्वचनं स्त्रियः । आगतं पुरुषं दृष्ट्वा कोऽसि कोऽसीति चाबुवन् । १२ ।। हे वरारोहे ! हे कमलनयनी सखी! यहां पर यह कौन है ? यद्द किरात रूपधारी जी घोड़ेपर चढ़कर आ रहा है! हे सखी ! क्या यह तुमसे पहले देखा गया है? इस प्रकार कहती हुई वे ठहर गयीं । तव व सुन्दर पद्मावती उन सखियों से धीरे बोली कि उसका वृत्तान्त, पिता, माता, बान्छवीं एवं देशका नाभ, उसकी अवस्था, फुल, शील एवं गोष्ट इत्यादिको पृछना चाहिये ! इस प्रकार सखी से आज्ञा पाकार वे स्त्रियां आये हुए पुरुषको देख “तु कौन है! तू कौन हैं' इस प्रकार पूछती हुई दोलीं । (१२) किमर्थमागतोऽसि त्वं किं ते कार्य वद प्रभो ! । न सन्ति पुरुषा ह्यत्र गच्छ गच्छेति चाबुवन् । तासां तद्वचनं श्रुत्वा हयस्थो वाचमूचिवान् ।। १३ ।। कन्थाएं बोली-है प्रभु! आप किसलिये यहाँ आये है ? आपको क्या काम है ? यहां पर पुरुपगण नहीं है; अत: आप चले जाइये । उनके इस प्रकारके वचनको सुनकर घोड़ेपर चढ़े हुए उस पुरुषचे कहा । (१३) श्रीभगवानुवाच---- अस्ति कार्य वरारोहाः राजपुत्र्याः समीपके ।। १४ ।। श्रीभगवान् बोले-हे वरारोहा ! राजपुत्रीले समीप कार्य है । श्रिय ऊच :- किं कार्य वद शीघ्र त्वं यत्ते मनसि वर्तते । क्व ते वासश्च किं नाम का ते माता च कः पिता ।। १५ ।। को भ्राता का च भगिनी किं कुलं गोत्रमेव च । . (१४)