पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/५१५

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तव वाक्यं करिष्यामि त्वष्टाविंशे कलौ युगे । तावदेषा ब्रह्मजीले ब्रह्मणा पूजिता भवेत् ।। ६८ ।। 497 श्रीरामेचन्द्रजी बोले-हे भामिनि ! भी मैंने एक-पत्नी-त किया है, सो तुम जानती हो ; चूंकि द्वापर में अङ्गीकार करूंगा, ऐसा वरदान बहुतीको दिया हुआ है, अतएव अट्ठाइसर्वे कलियुग में तुम्हारा वचन पूरा करूंगा; तबतक यह कहनलोक में ब्रह्मासे पूजित हो रहेगा । श्रुत्वैवं रामवाक्यं सा जगाम् भवनं विधेः । पद्मावत्याः कारणं तु भणितं तव सुव्रते ।। ६९ ।। न मे वाक्यमसत्यं स्यादिति वेदविदो विदुः । श्रुत्वा तज्जनने हेतुं बकुलाऽनन्दनिर्भरा ! कौतूहलसमाविष्टा श्रीनिवासमभाषत ।। ७० ।। श्रीरामचन्द्रजी के इस बाक्यञ्जो थुनकर वह ब्रह्मलोक में गयी । हे सुन्नते । पदमावती के अवतारका कारण तुमसे मैं झछा . मेरी बातें असत्य नहीं होती, यह वेदके जाननेवाले जानते है । उसकी उत्पत्ति के कारण सुनकर आनन्द एवं कौतूहलसे परिपूर्ण हो बकुला श्रोनिवासष्ट बोली । (७०) श्रीनिवासानुज्ञया नारायणधुरं प्रति बकुलागमनम्। बकुलोवाच गच्छामि राजेन्द्रसभां सभासदो यत्राऽसते सर्वकलाविशारदाः । आकाशराजस्य पुरी सुरोत्तमै संस्तूयमानौ च रमां विगूहिताम् ।। ७१ ।। 64