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602 निपपात तदाऽश्वस्तु शिलाभिहतचेतनः । स घोटं सुम्परित्यज्य जगामोत्तरदिङ्मुखः ।। ९४ ।। कन्याएं बोली-किसी समय पद्मावतीके साथ आफ्फर हम लोगोंने वनके अन्तर्गत पृष्प तोड़ना आरम्भ किया । वङ्कां पर विचित्र थोड़ेपर चढ़ा हुआ एक पुरुष आया । उसने छूम लोगोंसे अवाच्य वचन कहा । उसको सुनकर राजाकी पुत्रीने रुष्ट हो वातचीत की । उन दोनों में कलह उत्पन्न हो गया, कलहमें घोड़ा पीटा गया । तव शिलाओं से भारा हुआ बेहोश घोड़ा गिर पड़ा । वह् पुरुष घोड़ेो छोड़कर उत्तरकी और चला गया । (९४) गते किराते कमलोद्भवाऽथ सूच्छमुपाग्भ्य पपात भूमौ । कन्यां ततस्तामुपवेश्य याने पश्चात् बहू कमलसे उत्पन्न कन्या उद्य शिराप्तके चले जानेपर मूछित हो पृथ्वीपर गिर पड़ । तब उस कन्याकौ सवारी पर बैठाकर हमलोग अपने (९५) तामागतां मानगता सुतौ नृप श्चिन्तामुपागम्य रुरोद दीनः । अङ्के निधायात्मसुतौ च पश्य न्मुखं मुदा हीनभभाषणं च ।। ९६ ।। का वाऽभवन्मे दुहितुर्दूरासदां विभीषिका विश्वविनाशकारिणी । तस्या विनाशं स विजानते नराः । । गुरुं विनेति प्रसमीक्ष्य भूमिपः ।। ९७ ।। ततः सुराणा गुरुमात्तकृम्प समानयत्तत्र सुतेन शीघ्रम् । उस आयी हुई अपनी पुढीको मूर्छित देखकर, चिन्तित एवं दुःखी हो राजा रोने लगे और पश्चात् अपनी पुढीको गोदमें लेकर उसके खिन्न एवं भाषणरहित मुखको देखकर आलोचता करके कि “मेरी पुखी पर सर्वनाश करनेवाली कौनसी