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504 बृइस्पति गोले-हे राजा ! अश्नी पुत्री के कष्ठ के छारण छुनिये । यह कन्या पुष्प के लिये गई हुई एक पुरुषके दर्शनसे डर गई है। उसकी शान्तिका उपाय कहता हूँ सो सावधान हो सुनिये ! हे प्रभो ! झाह्मण लोग आपसे अगस्त्येश शिवाका अभिषेक एकादश रुदो (एकादशाध्यायी रुद्री) से करवावें । इस प्रकार गुरुसे कहे जानेपर राजाने ब्राह्मणोको जाज्ञा दी । (१०३) सम्पाद्य सर्वसम्भारान्वयं विप्रसमन्विताः । तत्पुत्री ज्वरतापेन शायिता निजमन्दिरे ।। १०४ ।। तच्छान्त्यर्थ वयं प्राप्ताः अभिषेकार्थमङ्गले । धिषणेन समाज्ञप्ताः द्विजवर्याः समागताः ।। १०५ ।। तस्माद्देशाद्वयं प्राप्तः कैलासपतिमन्दिरम् । गच्छसि त्वं कुत्र बाले ! किमर्थं त्वमिहागता । वदादेशमिति स्रौभिर्बकुला चोदिताऽङ्गवीत् ।। १०६ ।। हम लोग ब्राह्मणोंके साथ सब सामग्रियोंको एकाद्ध कर, अश्ते मन्दिर में ज्बर तापसै उनकी पुत्रीके खोजानेपर, उसकी शान्ति के लिये अभिषेश करने को आई है। हे अङ्गना । गुरुसे आज्ञा पाकर ब्राह्मण भी आ गये हैं। इसलिये हमलोग देशसे श्रीकैलासपतिकै मन्दिर भाई हैं। हे वाले ! तू कहाँ जाती हो ? किसलिये यहाँ बाई हो? जो आज्ञा हो सो कहो ! इष्ट प्रकार स्त्रियोंसे कहे जानेपर बकुला दोली ! (१०६) पद्मावतीसखीः प्रति बकुलावेदितस्त्रागमनवृत्तान्तः बकुलोक्षाच शृण्वन्तु कन्थकाः सर्वा मद्वाक्यमविचारतः ।। १०७ ।। प्रभावमात्मानुभवस्य विष्णोर्युयं न जानीथ पुराणपुंसः । कृष्णं मुकुन्दं तनयं विदन्त्याः वृथा शरीरं पुनरागतं मम ।। १०८ ।।