पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/५३

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35 संभूय देवाः सर्वेऽपि प्रोचुर्वाक्यमिदं तदा ।। ४९ ।। 'अयं वृद्धः कुमारोऽभूद्यस्मात्तस्मादिथं नदी । कुमारधारेति सदा लोके ख्यातिं गमिष्यति ।। ५० ।। पश्चात् सब देवता जपा होकर कहने लगे कि इस नदी में यह बृद्ध ब्राह्मण कुमार हो गये हैं, अत एव यह नदी आज से कुमार-धारा के नाम से संसार में विख्यात होगी । (४१-५०) त्रिकालमत्र यः स्नाति त्रिमासं विजितेन्द्रियः । वलीपलितनिर्मुक्तो वज्रकायो भवेन्नरः ।। ५१ ।। सर्वपापविनिर्मुक्तो याति विष्णोः परं पदम् । इत्युक्त्वा त्रिदशाः सर्वे जग्मुविस्मितमानसाः ।। ५२ ।। इति जाबालिकथितं तदुक्तं भवतां मया । य इदं श्रुणुयात्मत्य लभते स्नानजं फलम् ।। ५३ ।। और जो इसमें जितेन्द्रिय होकर विकात स्नान तीन मास तक करेगा, वह चर्म सिकुडन तथा बुटापावाले पलित आदि से मुक्त होकर वज्रकाय हो जायगा और सभी पापों से छुटकारा पाकर विष्णु भगवान के परम धाम को चला जायगा। यह कहकर सब देवता आनन्द एवं आश्वर्य मन अपने-अपने स्थान को चले गये । जाबालि मुनि की कही हुई इस कथा को जिसे हमने आप लोगों से कहा है, जो कोई सुनेगा वह भी इस कुमार-धारा में स्नान ही करने का फल पायेगा । . (५१-४३) इति श्रीवराहपुराणे श्रीवेङ्कटाचलमाहात्म्ये महर्षियज्ञवाटं प्रति रूपान्तरेण भगवदागमनजल धारादिवर्णनं नाम सप्तत्रिंशोऽध्यायोऽत्र पञ्चमः ।