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518 एलालवङ्गकपूरजातीपत्रैः सपूगकैः । नागवल्लीवलैर्युक्त पुनर्देहि वरानने ! ।। १९ ।। धर्मदेदी बोली-हे देवी! तुम्हारी पुत्रीके अंग सुयनेका कारण मैं कहता हूँ । किसी पुरुषेसे इसका यह उपद्रव आया है ! इसके पहले दिन वह घोड़ेपर चढ़े हुए किसी पुरुषको देखकर मोहके वश कामज्वरसे पीड़ित हो गयी । हे माता । विस्तारके साथ सुनो ! पुन्नके साथ टोकरीकी, धदरी वनमें रहनेवाले भतकी, माताकी एवं गुरुकी सौगन्ध करती हूँ. तुम्ही पुत्रीं श्रीवेङ्कटेष्टको अपना पति बनाना चाहती है, वैसा ही शुभ होगा, यह बात् असत्य नहीं क्षेगी । हे रातौ । मैं अपनी सौगन्ध करती हूँ, इसको सत्य सलक्तो ! हे सुन्दरी ! मैं सत्य कहती हूँ । हे श्रेष्ठमुखवाली ! हे सुन्दरी ! मुक्तको इलायची, लवङ्ग, कपूर, जाबिठी, सुपारी तथा नागवल्लीके दल के साथ तान्बूल. पुनः दो ! (१९) इत्युक्ता धरणी देवी ताम्बूलं पुनरप्यदात् । पुनरालोचयन्ती सा पुलिन्दा वाक्यमब्रवीत् ।। २० ।। इस प्रकार कहे जानेपर उ धरणीदेवीदें पुनः उसको पान दिया । वह पुलिन्दा पुन: आलोचना करती हुई बोली : (२०) योऽसौ तुरगमारूढः पुरुषः पूर्वमागतः । किरातरूपधारी स साक्षान्यन्मथमन्मथः । २१ । । त दृष्ट्वा मोहमायाता कामज्वरसुपीडिता । दुहिता तेऽभवद्राज्ञि ततोऽस्या अङ्गशोषणम् ।। २२ ।। तच्छान्त्यर्थं वरारोहे तस्मै सा सम्प्रदीयताम् । इत्युक्ता धरणीदेवी धर्मदेवीं वचोऽब्रवीत् ।। २३ ।। पुलिन्दा बोली-पूर्वमें जो पुरुष घोड़ेपर चढ़ा हुझा आया था, वह किरातरुप धारण किये हुए साक्षात कामदेवका भी कामदेव था । हे रानी । उनको देखकर तुम्हारी पुढी मोके वशमें कामके ज्वर से पीड़ित हो गयी है । इस हेत इसके