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2 छाये हुए ब्राह्मणों की गन्ध, पुष्प, अक्षत इत्यादि घस्त, अलक्षुर तथा आभूषणोंसे विधिपूर्वक पूजा करके, ब्राह्मणों के झाशीर्वाद अन्त्रसे क्षफ्ली पुत्री की मार्जन कर, ब्रह्मणीं की आज्ञा से स्वयं राजाने भोजन किया । वह महभागा धरणीदेवी भी भोजन करके बाहर आथी और उ नये रूपृक्षाली बहूलाको देखीं तथा घर्मदेवी के वचनको स्मरण कर उसके पास याई और इसके वृत्तान्त को जाननेवाली उन कन्याओं से पूछी । (६७) कैषा कस्मादुपायाता पूज्येव प्रतिभाति मे । पृच्छयतां कन्यकाः ! अस्याः किमागमनकारणम् ।। ६८ ।। एवमुक्ताः कन्यकास्तु धरणीमबुवंस्तदा । त्यकाः धरणी बोली-यह कौन है ? किस कारण से आई है ? मुझको यह पूज्यके जैसी मालूम होती है । हे कन्याओं । इसके आगमनका यो कारण है, सो हो । ऐसा पूछे जानेपर वे कुन्या धरणीदेवीसै बोली ! (६८) वासः पन्नगशैलेऽस्याः स्वामी श्रीवेङ्कटैश्वरः ।। ६९ ।। तदाज्ञाकारिका काचिन्नाम्ना बकुलमालिका । अनया धरणोदेव्याः संनिधौ मम किंचन ।। ७० ।। कार्यमस्तीति कथितं ततस्तु सहितास्तया । वयं प्राप्ता महाभागे ! त्वत्समीपमिहाधुना ।। ७१ ।। पृच्छयतां सैवं वृत्तांत तदागमनकारणम् । एवमुक्ताऽथ कल्याणी बकुलो समभाषत ।। ७२ ।। तिष्ठ भद्रे ! वरारोहे ! रत्नपीठे सुनिर्मले । इत्युक्तानन्दभरिता बकुला तत्रसंस्थिता ।। ७३ ।।