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30 पाणिग्रहणकाले तु तं दृष्ट्वा तोषमेष्यसि । किमत्र बहुनोक्तेन दर्शनात्ते सुखं भवेत् । तद् वृत्तमखिलं श्रुत्वा तामाहानन्दनिर्भरा ।। ८३ ।। बकुला बोली-हे रानी ! उनके गोस्र तथा बन्धुजनोंका परिचय विस्तारपूर्धयः सुझेो । उनकी आता देवकी एवं पिता शूरनन्दन वसुदेव हैं । चन्द्रवंश उमा वंश है । कृष्ण उनकेा नाभ है । वशिष्ठ गोत्र उनका जन्म है । श्रवण उनका नक्षत है । उनका निवासस्थान श्रीवेङ्कटाचल है। वे विद्यावान्, धनवान्, बली एवं बहुत आचार विचारवाले पच्चीस वर्ष की अवस्थावाले है । पाणिग्रहणके समयमें उनको देखकर सन्तुष्ट हा जाओोगी । यहाँ अधिक कट्टनेसे क्या? उनके दर्शन ही से तुमको सुख होगा । उनके पूर्ण वृत्तान्सको सुनकर आनन्दसे भरी हुई धरणीदेवौने उससे कहा ! शङ्का जाता वरारोहे मम ते वचनात्सबूि !। सभाग्यश्च कुलीनश्च बुद्धिमाञ्च युवा बली ।। ८४ ।। वाग्मी चोक्तोऽक्ष्य चैतावद्विवाहो न कृतः कृतः ? सा तद्वचनमाकण्यन्पत्थमनुचिन्त्य तम् । धैर्येण वचनं प्राह धरणीं राजवल्लभाम् ।। ८५ ।। धरणी बोली-हे वरारोहे ! है सखी ! तुम्हारी बातसे मुझको शंका हुई है । आपने कङ्का-वे भाग्यवान् कुलीन, बुद्धिमान्, बलवान् युवा तथा विद्वान है, उनका भीतव विवाह क्यों नहीं हुला ? व बकुला उस मभेदी वचनो सुनकर, उन रिको स्मरणकर, धैर्य केसाय राजाकी प्यारी धरणी देवीसे बकुलोवाच कृतवैवाहिको दैवि बाल्ये भागीरथीपिता । तत्रापत्एभनालोक्य द्वितीयं कर्तुमुत्सुकः ।। ८६ ।।