पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/५५०

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धरणीयेके वचन से अवकाशराज द्वारा पद्मावतीका आश्वासन धरणी बोली-हे राजन् ! य६ बंजुकुजा श्रीवेङ्कटादलसे कन्या (देखने) छे लिये झायां है; आप भी अपने पुरोहित और ब्राह्मणोंके साथ अपते.पुत्रको भेत्रकर, वरका कुल, विद्या, बल इत्यादिका शीघ्र विचार करो, वेदज्ञ ब्राह्मणसे गोलू नक्षस इत्यादिकी अनुकूलता एवं वर ऋन्याकी. योनि नाड़ी इत्यादिकी सुसंगतिका विचार करो, हे प्रभो ! सब कुछ अच्छी तरह देखभाल कर कन्यादान, करो । यह् साध्वी कन्याके लिये आयी है और मैंने पुत्रीका मन भी टोला है। झापकी पुत्री उस श्रीवेङ्कटाचलवासीको ही चश्ती है । धर्मदेवीले शुम वपनोंका शीघ्र ही एालन करो ! पत्नीके इस वक्त्वको सुनकर वह राजा आनन्दसे भर गया । (९३) शाङ्क 52 रज च। अहो मङ्गलमस्माकं सम्प्राप्तं पूर्वपुण्यतः । अस्माकं पितरः सर्वे कृतार्था मुक्तिभागिनः ।। ९४ ।। त्वद्वाक्यामृतपातेन रोमहर्षस्तु जायते । कदा पश्यामि कल्याणं वधूत्ररसमागतः ।। ९५ ।। सभर्तृकां राजपुत्रीं राजसिंहासते स्थिताम् । कदा पश्यामि वेत्राभ्यां बन्धुमण्डलमध्यगाम् ।। ९६ ।। इत्युक्त्वा भवने चागाद् दुहितुर्युहितृप्रियः। नृपः प्रभावतीं प्राह सान्त्वयन् वचसा सुताम् ।। ९७ !! आकाशराज बोले-अहा ! पुर्व पुण्यले संस्कारसे मलोगोंको मङ्गल प्राप्त हुआ है; हमलोगोंके सब पितर कृतार्थे और मुक्तिवे भागी है। तुम्ारी वाणीध्पी अमृतक्षो भीकर रोम-रुं होता है। वर वधू सम्बन्धी कल्याण कब देखूगा ? बंधुमण्डल के भध्एमें पति के साथ राजसिंहासनपर बैठी हुई राजपुत्रीको आखों से क्षक देगा ? पुत्री-प्रेमी राजा इस प्रकार कह कर पुीके घर गये और अपनी पुत्री पद्मावती को वचनों द्वारा सान्त्वता देते हुए बोले ! ' .. " (९७)